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सपनों के देश में

सपनों के देश में

सपनों के देश में –

बचपन से ही मन में एक ख्वाब ले कर जीने वाली मैं सुकन्या, आज जिस जगह आकर खड़ी हो गई हूँ, वो मेरे सपनो का देश ही तो हैं। 

जिसे देखा तो मैंने था, पर जिया मेरे साथ मेरे बाऊजी ने भी था। 

मन कब अतीत के पन्ने टटोलने पहुंच गया मेरे गांव….पता ही नहीं चला। 

मैं इंडिया में एक छोटे से गांव में जन्मी , एक साधारण से परिवार में पली बढ़ी एक भारतीय लड़की थी। 

जब जब सहेलियों के मुख से विदेश का नाम सुनती थी तो मन में एक ललक पैदा हो जाती थी विदेश जाने की। 

पर “मेरी किस्मत में ये कहा”, यह सोच कर मैं मन मासोंस लेती थी… पर ये ललक कब ख़्वाब बन गई पता ही नहीं चला। 

मैं पढ़ने में शुरू से ही बहुत अव्वल रही हूँ.. पर उस टाइम लड़कियों की शिक्षा इतनी भी आसान नहीं थी।  

गांव में एक मात्र स्कूल था वो भी १२वी तक बस …उसके बाद ज्यादातर लड़कियों की शादी ही हो जाया करती थी। 

मेरी माँ थोड़ा पुराने विचारो की थी, पर मेरे बाऊजी बहुत अच्छे एवं खुले विचारो के थे, उन्होंने मेरी पढाई को लेकर कभी कुछ नहीं कहा और बल्कि मुझे पूरा सहयोग ही करते थे। 

माँ के हिसाब से बाऊजी ने मुझे सर चढ़ा रखा था। 

“सुक्कू स्वेटर बुनना सीख ले , खाना बनाना सीख ले, यही काम आएगा”, ये आवाज मुझे अतीत में खींच कर ले गई। 

“सुक्कू” , मेरे बचपन का नाम जिससे माँ बाऊजी मुझे प्यार से बुलाते थे। 

मेरा नवयौवन में कदम –

“१६ साल की होने को आई है कुछ नहीं आता , अरे कुछ तो सीख ले , पूरा दिन सहेलियों के साथ हंसी ठठा करती फिरती है , ससुराल जाके क्या हमे गाली पड़वाएगी।”, माँ ने ताना मारा 

“ओफ्फो हर टाइम यही सब… मैं न जाउंगी ससुराल”, मैंने नखरा दिखाया। 

“हम्म ! सब ऐसे ही बोलती है और फिर एक दिन खुद ही चली जाती है हमे छोड़ के ससुराल “, माँ इमोशनल हो के बोली। 

“अभी तो मैं पढ़ रही हूँ माँ , अभी तो मुझे और पढ़ना है…सीख लूँगी सब आराम से” , कहकर मैं फिर वहां से खिसक गई..।  

पर मैं कही न कही अपने मन में यही सोच रही थी, कि 

” क्यों जाना होता है लड़की को ही ? , क्या लड़की वाकई पराया धन होती है ?”

सब कुछ मुझे बहुत अजीब लगता था कभी कभी। 

धीरे धीरे टाइम बीत रहा था और मैं अब १६ से १८ की हो गई थी ….

“बस बहुत पढ़ ली , अब कोई जरुरत नहीं , माँ ने बाऊजी की तरफ देख कर बोला, अब १२वी हो जाएगी , काफी है.. गांव में आगे स्कूल भी नहीं हैं। ये क्या अब बाहर पढ़ने जाएगी? “, जैसे माँ , बाऊजी को कुछ समझाना चाह रही थी। 

“अब तो १८ की हो गई हैं , अब तो इसके हाथ पीले कर देना। फिर अच्छे रिश्ते हाथ नहीं आते। “, माँ ने जैसे अपनी मन की बात कह ही दी। 

“मुझे अभी नहीं करनी शादी , मुझे पढ़ना है। “, मैं बोली और उठ कर अंदर चली गई। 

“ये देखो बहस कर रही है। ” , माँ गुस्से में बोली। 

बाऊजी ने इशारे से उनको शांत किया। , “जो ये चाहेगी वो ही होगा। “, बाऊजी ने फैसला सुनाया। 

यह सुनकर मैं मन ही मन बड़ा खुश थी। 

मेरी शादी पक्की होना –

पर ये ख़ुशी ज़्यादा दिन की नहीं थी। 

हमारे दूर के एक रिश्तेदार , मेरे लिए एक रिश्ता लेकर आये थे। 

“लड़का विदेश में नौकरी करता हैं।”, ये सुनकर तो जैसे हमारे घर और बिरादरी में शोर सा मच गया था … 

उन दिनों लड़कियों को ज्यादा पढ़ने पढ़ाने का चलन नहीं था और विदेश जाना जैसे पारियो के देश की कहानी जैसा होता था। 

मैं जो हर टाइम , “शादी न करुँगी ” का अलाप लगाती रहती थी , आज सहेलियों के छेड़े जाने पर थोड़ा मचली। आखिर कही न कही मैं भी तो मन ही मन यही ख्वाब बुनती थी।  

“देख कितना बढ़िया रिश्ता आया है , वो भी विदेशी बाबू का… बहुत किस्मत वाली है तू सुक्कू ” , एक सहेली ने कमान कसी। 

“पर लड़का दिखने में कैसा है , क्या करता है ये तो देख लू , तभी तो…”, मैंने मन की भावनाओ को छुपाते हुए बोला। 

“अरे बस भी कर, तू देखेगी ये सब… तेरे से कोई पूछेगा भी नहीं देख लेना। , हमारे यहाँ ऐसा नहीं होता। लड़कियों से कौन पूछता है। ” , एक सहेली ने कटाक्ष किया। 

मैं सुन कर थोडा घबरा तो गई थी। 

शादी की तैयारियाँ

पर वही हुआ जिसका डर था। मुझे लड़के की फोटो बिना दिखाए , बिना कुछ बताये , रिश्ता पक्का कर दिया गया…

बस इतना जानती थी कि वो दुबई में रहता है और वही मुझे भी शादी के बाद उसके साथ जाना था। 

“पर ये तो मेरे सपनो का देश नहीं था। 

अब मेरे सपनो का क्या होगा ?

मेरी पढाई का क्या होगा ?

मैं तो शुरू से ही पढाई में अव्वल रही हूँ। क्या अब सब खतम ? 

क्या वो मुझे आगे पढ़ने देगा ?

पता नहीं वो कैसा इंसान होगा ?

नहीं ऐसा नहीं हो सकता “, मेरा मन पता नहीं क्या क्या सोच रहा था ? , मुझे कुछ भी तो नहीं पता था।

पर मैं क्या कर सकती थी। समय के तो जैसे पंख ही लग गए थे।

चारो और तैयारियों का शोर था , और फिर शादी का दिन भी आ ही गया 

मेरे बाऊजी ने, जितना अच्छा वो इंतजाम कर सकते थे, उससे बहुत बढ़ कर किया। 

कोई चीज की कसर नहीं छोड़ी थी। आखिर उनकी लाड़ली कि शादी जो थी। 

लड़के वालो का दहेज़ मांगना –

पर जैसे लड़के वालो के तेवर तो कुछ और ही थे। 

बारात आई और लड़के के पिता ने अच्छी खासी डिमांड रख दी.. मेरे बाऊजी उसे पूरा करने में असमर्थ थे। 

पर बारात दरवाजे पर आ चुकी थी और अब हमारी इज्जत पर बात आ गई थी। 

“उन लोगो ने पहले कुछ क्यों नहीं कहाँ? अब क्या होगा?”, मैं भी मन ही मन थोड़ा घबरा गयी थी। 

बाऊजी ने काफी हाथ जोड़े कि वो बाद में पूरी कोशिश करेंगे सब कुछ देने की , पर वो लोग तो इस बात पर अड़ गए थे कि पहले सब दो फिर ही शादी होगी। 

जब ये बात मुझ तक पहुंची तो, मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा। 

मेरे बाऊजी इतना लाचार कैसे हो सकते है , वो भी अपनी बेटी के कारण। 

मैंने बाऊजी को बुलाया और कहा “क्या मैं आप पर बोझ हूँ , जो आप मुझे ऐसे आदमी के साथ भेज रहे हो.., जहाँ मैं कभी खुश नहीं रहूंगी और ये बात आप भी अच्छे से अब तक जान गए होंगे। “

पहले तो बाऊजी मुझे देखते रह गए कि ये मैं क्या कह रही हूँ। पर फिर मेरे बाऊजी ने मेरी पीठ थपथपाई और बाहर जाकर, सीना ठोक, बारात को वापिस भगा दिया। 

फिर बिरादरी वालो से बोले, ” ये जो लड़का था ना , ये मेरी सुक्कू के साथ शादी करने नहीं आया था , ये तो विदेश में होने की फीस वसूलने आया था। ” 

पर बिरादरी वाले कहा ये सब सुनने वाले थे। 

कुछ पुराने ख़्यालात वाले बुजुर्ग बोले, “अब कौन करेगा तेरी बेटी के साथ शादी? , बोल , बारात लौटा दी हैं तूने, अब थू-थू होगी सब जगह। अरे लड़की विदेश भी तो जा रही थी। दे देता थोड़ा पैसा , तो क्या हो जाता ?”

मेरे पिता का आगे पढ़ाई के लिए कहना –

मुझे अंदर सब सुनाई आ रहा था और गुस्सा भी, पर बाहर आने से माँ और सहेलियों ने रोक दिया। 

बाऊजी बस चुपचाप सुनते रहे और फिर सब लोग वहां से चले गए। 

पर बाऊजी चुप और उदास बैठें थे। 

एकाएक वो उठें और मेरे पास आकर बोले, 

“बोल पढ़ेंगी आगे , तू भी बाहर जा सकती है। , बोल लगाएगी सबके मुँह पर ताले ,बोल करेगी मेरा सर ऊंचा ?”

मैं तो जैसे एकटक बाऊजी को ही देखे जा रही थी। 

“हाँ बाऊजी “, मेरे मुख से निकला। , आपकी बेटी आपका गुरुर है कलंक नहीं। 

और फिर मैं जुट गई तैयारियों में… 

मेरे बाऊजी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। 

मैंने न जाने कितने कॉम्पीटीशन भरे , कितनी बार बाहर हुई। 

फिर दूसरे शहर पढाई करने भी गयी और आखिरकार वो दिन आ ही गया। 

मेरा विदेश जाना –

मेरा आगे की पढाई के लिए, बाहर की यूनिवर्सिटी से ऑफर लेटर आ ही गया। 

एक हफ्ते में ही मुझे यूरोप जाना था। 

मेरे सपनो का देश।। 

हाँ !

मेरे सपनो का देश।। 

मुझे तो जैसे, यकींन ही नहीं हो रहा था। 

सब कुछ जैसे सपना था। , क्या वाकई ये सच था ?

मैंने खुद को एक चुटकी काटी। 

आह ! हाँ , सच ही तो है। 

मेरे बाऊजी पूरी बिरादरी में मिठाई बाँट रहे थे और बोलने वालो के मुँह सिले हुए थे। 

उस दिन जो बेटी सबको अपने पिता के लिए कलंक लग रही थी, वही आज उनका गुरुर बन गई थी। 

मेरे बाऊजी का सीना गर्व से चौड़ा हो रहा था। 

हम्म ! , और मैं जाने की तैयारियों में लग चुकी थी। 

मेरे जाने की सारी तैयारियां हो चुकी थी। 

और कल मैं उड़ान भरने वाली थी। ,एक अनजानी जगह के लिए , अपने सपनों के देश में …

रोल नंबर प्लीज !

किसी की आवाज ने मेरा ध्यान तोड़ा। 

और मैं अतीत से तुरंत , जैसे वर्तमान में आ गई,

और वो भी अपने होंठो पर हलकी सी मुस्कान लिए, 

अपने सपनों के देश में ।। 

आप सभी को मेरी ये कहानी कैसी लगी? क्या सुक्कू और उसके बाऊजी ने सही किया था ? क्या आप भी लड़कियों को बहुत आगे तक पढ़ना चाहिए ऐसा ही सोचते है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया कमैंट्स के माध्यम से जरूर दीजिये।
आप अपने व्यूज नीचे दिए कमेंट बॉक्स में लिख कर मुझ तक पंहुचा सकते है।

 -रूचि जैन  

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