आज विश्व पुस्तक दिवस पर – मेंरी जिंदगी भी तो एक खुली किताब ही है
मेरी कलम से
कुछ किताबें अलमारी से, झाँक कर बोली
मुझे क्यों कर दिया बंद, दरख्तों के पीछे…
आज भी सबकुछ समेटे हूँ अंदर अपने
तेरे नई , पुरानी जिंदगानी के किस्से…
हाँ , वाकई
मेंरी जिंदगी भी तो एक खुली किताब ही है …
मैं यादें हूँ पुरानी तेरी, क, ख से शुरू हुए सफर की
वो प्यार, वो एहसास , वो कहानियाँ , वो किस्से
जो तुम सुनते थे और सुनाते थे, नुक्कड़ पर हँसके
वो ज्ञान , वो इतिहास, जो याद नहीं रहता था कभी
वो इम्मतिहान की रात, जब मुझे छोड़ता था न कोई
आज भी सबकुछ समेटे हूँ अंदर अपने
कई राज तेरे बचपन के…
हाँ , वाकई
मेंरी जिंदगी भी तो एक खुली किताब ही है…
जब जब नींद नहीं आती थी, पढ़ लेते थे कहानी
कभी सुनते थे दादी से, पापा के किस्से
तो कभी माँ का बचपन सुनाती थी नानी…
चम्पक , मोटू-पतलू और चाचा चौधरी की किताबे
पढ़ते थे हंस हंस के , छिपके-छिपाके
आज भी सबकुछ समेटे हूँ अंदर अपने
तेरी शरारत भरी बचपन की यादें…
हाँ , वाकई
मेंरी जिंदगी भी तो एक खुली किताब ही है…
और अब अंत में जब हम बड़े होकर किताबे पढ़ना ही छोड़ देते है तब देखिये किताबें क्या कहती है –
अब बड़े हो गए तो, क्यों छोड़ दिया साथ
अभी भी है, मुझमें वो ही बात
ज्ञान बढ़ाउंगी, दुनिया घुमाऊँगी
हर क्षेत्र के बारे में, तुझको बताउंगी
हार्ड कॉपी में पढ़ ले, या पढ़ ले तू सॉफ्ट कॉपी
रूप बदल गया बस, पर हूँ मैं वही अनोखी
आज भी सबकुछ समेटे हूँ अंदर अपने
तेरे लेखन से लेके, वैज्ञानिको तक के फार्मूले…
हाँ , वाकई
मेंरी जिंदगी भी तो एक खुली किताब ही है…
कुछ किताबें अलमारी से, झाँक कर बोली
मुझे क्यों कर दिया बंद, दरख्तों के पीछे…
हाँ , वाकई
मेंरी जिंदगी भी तो एक खुली किताब ही है…
-रूचि जैन
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