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मन की बात

मन की बात-

अपर्णा चुपचाप खिड़की पर बैठी थी। पता नहीं क्या सोच रही थी की अचानक किसी की आवाज ने उसका ध्यान खींच लिया।

“आ गए आप, बड़ी देर कर दी आज?”, अपर्णा ने अपने पति धीरज की तरफ देखकर पूछा।

“हाँ ! आज काम बहुत था। आ गया ये क्या कम है। कल रविवार है छुट्टी का दिन , वाह ! आराम से उठूंगा।” हँसते हुए धीरज ने कहा और फ्रेश होने बाथरूम में चला गया।

“हम्म ! मैं भी चाय चढ़ा देती हूँ।”, अपर्णा रसोईघर की तरफ चल पड़ी।

थोड़ी देर बाद दोनों बालकनी में बैठे चाय पी रहे थे।

“मुझे आपसे अपने मन की एक बात करनी है।”, अपर्णा ने कहा।

“हाँ बोलो !”, धीरज जिज्ञासा से बोला।

“अभी नहीं , कल “, अपर्णा ने धीरे से बोला।

“अरे यार ! कल क्यों? अब पूरी रात सरप्राइज ही रखोगी क्या ?, कल तो मेरा बर्थडे है , क्या गिफ्ट दे रही हो।”, धीरज ने इठलाते हुए बोला।

“मन की बात” , अपर्णा ने कहा और हंस पड़ी।”

“ओके-ओके”

तभी हलकी हलकी बारिश होने लगी। “सही टाइम पर आ गया मैं, नहीं तो भीग जाता।” धीरज मुस्कुराते हुए बोला।

“हाँ ! पता नहीं आज कल तो अचानक ही आ जाती है बारिश “, अपर्णा कप उठाते हुए बोली।  

“पहले आ जाती बारिश तो चाय के साथ गरम पकोड़े भी मिल जाते। ” धीरज फिर से मुस्कुराया।

“कोई पकोड़े सकोडे नहीं , टाइम देखा है , 9 बजने वाले है , अब सीधा खाना लगाउंगी। ” , अपर्णा ने धीरज की तरफ देख कर थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला।

“ओके -ओके , ठीक है , मैं टीवी देख लेता हूँ इतने। “

धीरज ने टीवी खोला और अपर्णा किचन में चली गई। दोनों ने खाना खाया , थोड़ी देर गप्पे मारे और सोने चले गए।

दोनों का मार्किट जाना –

ये उनका रोज का रूटीन था। दोनों ही बहुत ख़ुश मिजाज और दिल के सच्चे इंसान थे।  

“मुझे कल मार्किट जाना है , ले चलोगे। “, अपर्णा ने नींद में ऊंघते हुए पूछा।

“हाँ बाबा , अब सो जाओ, मैं बहुत थका हुआ हूँ। “, और धीरज तो जैसे खर्राटे ही लेने लगा।

अगले दिन दोनों ने नाश्ता किया और मार्किट की तरफ निकल पड़े।

“क्या लेना है तुमको, इतना सब कुछ तो है। , मेरे लिए कोई गिफ्ट ?” धीरज ने छेड़ते हुए बोला।

“अरे ! आप बस चलो , पता लग जायेगा। ” अपर्णा ने जवाब दिया।

दोनों एक कपड़ो की दुकान में घुसे।

एक घंटे बाद धीरज बोला “हो गई क्या शॉपिंग?, अब चले। “

“नहीं , अभी रुको !” , अपर्णा कपडे सेलेक्ट करने में लगी पड़ी थी।

“इतने सारे कपडे किसके लिए ले लिए? बर्थडे तो मेरा है , और मेरा गिफ्ट कहा है? “, धीरज ने आश्चर्य से पूछा।

“पता चल जायेगा , चलो बिल भरो। मैं बाहर इंतजार करती हूँ। “, अपर्णा शॉप से बाहर निकल गई।
धीरज ने अपर्णा को एक अजीब सी प्रश्न भरी नजरो से देखा।
और जब कुछ समझ नहीं आया तो हंसकर गर्दन हिलाई और बिल काउंटर की ओर बढ़ गया।

“उफ़! ये अपर्णा भी ना एक पहेली बन जाती है कभी कभी जो मेरी समझ से परे है। “, धीरज मन ही मन बुदबुदाया।
बिल देकर धीरज बाहर आया फिर दोनों ने डिक्की में सामान डाला और चल पड़े घर की तरफ।

अपर्णा का वृद्ध आश्रम जाना –

“रुको ! ” ,अपर्णा ने बोला , “घर नहीं , हमे कही और जाना है। “

“पर कहाँ?”, धीरज ने बहुत आश्चर्य से पूछा –

“वृद्ध आश्रम”, अपर्णा की आँखों में एक अजीब चमक थी।

“वृद्ध आश्रम?” , धीरज को कुछ समझ नहीं आया।
“अरे तुम चलो तो सही।”, अपर्णा की आवाज में एक अलग ही खुशी थी।
“ओके,ओके “, और धीरज ने कार वृद्ध आश्रम की तरफ मोड़ दी।

गेट पर कार रुकी और अपर्णा फटाफट सारे बैग डिक्की से निकाल कर अंदर की ओर चली गई। उसने ये भी नहीं देखा के बेचारा धीरज अभी कार पार्किंग में ही लगा है।  

धीरज जब अंदर पंहुचा तो क्या देखता है, तीन – चार बुजुर्ग लोग अपर्णा के साथ बैठे बातें कर रहे है। और अपर्णा बस हॅसे जा रही है।

उसने अपर्णा को इतना ख़ुश पहले कभी नहीं देखा था।
आज अपर्णा के चेहरे पर एक अलग ही नूर था जो धीरज ने पहले कभी नहीं देखा था। उसका चेहरा इतना दमक रहा था जैसे पूनम का चाँद।
कुछ पल के लिए वो उसे बस यूँ ही खड़ा देखता सा रह गया।

उसे वो पुराने दिन याद आने लगे जब उनकी शादी बस पक्की हुई थी।
अपर्णा का नूर उस समय भी ऐसा ही था बिलकुल दमकता हुआ। उस टाइम अपर्णा अपनी पढाई कम्पलीट कर रही थी और धीरज नयी नयी जॉब में लगा था।
उसका रोका ओर शादी के बीच ६ महीनो का अंतर था और वो कैसे अपर्णा को देखने उससे मिलने के बहाने ढूढ़ा करता था।
कभी मौका मिल जाता था और कभी कभी उसे खाली हाथ लौटना पड़ता था।

कभी कॉलेज के बाहर तो कभी कॉलेज कि कैंटीन में, अपर्णा कि सहेलियों उससे मिवाने क लिए पटाना, प्लांनिंग्स करना और नए नए तिगड़म बनाना।
एक दिन अचानक कॉलेज के बाहर उससे आमना सामना हो गया था , उसने रेड कलर का सूट पहना हुआ था। काली आँखें , गुलाबी होंठ और गोरे रंग पर रेड सूट इतना जंच रहा था कि धीरज का तो मुँह और आंखें ही खुली रह गयी थी। उस दिन उसने न जाने खुद को कैसे संभाला था।

उसी बीच अपर्णा की बर्थडे आई तो धीरज ने प्यार प्यार में अपर्णा के घर न जाने कितने गिफ्ट्स भिजवा दिए थे। उसे एक बार भी ये ध्यान नहीं आया कि जब सब उससे पूछेंगे तो वो क्या बोलेगी। उसपर तो अपर्णा के प्यार का भूत चढ़ा हुआ था।
उस टाइम दिल और जज्बात ही ऐसे हो गए थे कि कुछ समझ ही नहीं आता था धीरज को। और वो न चाहते हुए भी ऐसी नादानियाँ कर ही जाता था।
और इस बार भी अपर्णा के बाबूजी ने नाराज होकर धीरज के बाबू जी से शिकायत भी कर दी थी , जिससे खिन्न होकर धीरज के बाबूजी ने धीरज की क्लास भी लगा डाली थी।

पर वो कहते है न कि दिल है की मानता नहीं। तो धीरज भी कहा सुधरने वाला था।

एक बार तो उससे मिलने के लिए धीरज ने कॉलेज की दीवार तक फांद डाली थी। जिस कारण उसके हाथ में थोड़ा चोट भी आ गई थी।
पर अपर्णा सुनहरी तितली सी कॉलेज से ऐसे गयाब हुई थी की धीरज हाथ मलता रह गया था।

बाद में जब अपर्णा को चोट का पता लगा तो वो धीरज से मिली भी थी वो भी कॉलेज के बाहर बस ५ मिनट के लिए।

धीरज के हाथ में एक गुलाब का फूल देकर और गेट वेल सून बोलकर वो फटाफट अंदर चली गयी थी।
और धीरज उस गुलाब के फूल को न जाने कितने दिनों तक अपनी शर्ट कि पॉकेट में लेकर घूमता फिरा था।

ऐसा नहीं था की अपर्णा का मन उससे मिलने का नहीं करता था। पर वो भी क्या करती।
उन दिनों ये आम बात भी नहीं होती थी और उसे डर भी लगता था कि अगर किसी ने देख लिया तो घर पर क्या कहेगी।
बस इसी कारण अपर्णा धीरज से बचती रहती थी और उसे ऐसे ही तड़पाती रहती थी।

और वो रोज कोई न कोई बहाना या आईडिया निकल ही लाता था और जब तीर निशाने पर लग जाता था तो खुशी से नाच भी पड़ता था।
उसका व्यक्तित्व ही इतना मनमोहक था कि उसकी ये सब नादानियाँ अपर्णा को उसकी और खींचती चली जाती थी।
और दिल बार बार कह उठता था कि हमे तुमसे प्यार है।

धीरज को देख कर अपर्णा बोली ,”अरे कहा खो गए आप। “
अपर्णा की आवाज ने उसका ध्यान खींचा।

“मैं यही हूँ, तुम्हारे ही पास”, धीरज ने थोड़ा मुस्कुराकर रोमांटिक अंदाज में जवाब दिया।

अपर्णा धीरज की चंचल नजरो को देख कर मुस्कुराई ओर बोली, “आओ धीरज पहले मेरे दोस्तों से मिलो।, ये मेरे सब नए दोस्त है जो कुछ टाइम पहले ही मुझसे मिले है , पर ऐसा लगता है मानो कोई पुराना साथ हो इनसे।
ये सारे उपहार मेरे इन दोस्तों के लिए ही है। “

पहले तो धीरज बहुत अचंभित हुआ पर फिर पास ही एक कुर्सी पर बैठ गया।

अपर्णा का धीरज को बर्थडे गिफ्ट देना –

अपर्णा ने उसका परिचय सभी से कराया और बोली –

“ये मेरे पति है और मेरे जीवन कि रेखा भी।
मेरा अतीत , मेरा आज और मेरा कल भी ये ही है।
धीरज ने मुझे अपने जीवन में बहुत सपोर्ट किया है। “

जब मैं शादी होकर इनके साथ आई थी। तब कुछ महीनो बाद ही मेरे माँ – बाबू जी की एक एक्सीडेंट में डेथ हो गई थी।
उस टाइम मुझे इन्होने ही संभाला था।

मेरे सासु माँ और पिता ससुर ने भी मुझे कभी ये एहसास नहीं होने दिया कि मेरे माता पिता अब नहीं है।
उनका जाना मेरे जीवन में एक अकेलापन का आना ही तो था जिसे धीरज ने कभी नहीं आने दिया। उनसे अच्छा साथी भला कोई और कहा होगा।

अपर्णा धीरज कि तरफ देख कर मुस्कुराई और बोली –
“मैं बहुत किस्मत वाली हूँ धीरज , जो आप मुझे मिले।”

“आज मैं आपको आपका बर्थडे गिफ्ट देती हूँ। ” अपर्णा ने एक गहरी सांस ली ,

“मन की बात, यही तो उपहार है आपका। “

“ये मेरे मन की एक बात ही तो है जो मैंने आपको कभी नहीं कही थी । “, अपर्णा ने कहना शुरू किया।

“आप जब ऑफिस चले जाते थे तो मुझे समझ ही नहीं आता था की मैं क्या करुँ।

मेरे बहुत सारे दोस्तों के ग्रुप है , मेरी दोस्तों की किटी ग्रुप्स भी है पर मुझे ये सब पसंद नहीं था। , मैं कुछ अलग करना चाहती थी। कुछ ऐसा जिससे मुझे ख़ुशी मिले और दुसरो को भी।

तभी एक दिन मुझे मेरे एक दोस्त ने इस वृद्ध आश्रम के बारे में बताया।

ये वो लोग है , या तो जिनका कोई है नहीं या फिर जिनका कोई होकर भी इनसे बहुत दूर है।

मैं अपने दोस्त के साथ यहाँ आई तो जैसे एक सुकून मिला।

इन सबसे मेरी दोस्ती हो गई। इनसे बाते करना, इनके साथ समय व्यतीत करना , इनकी बाते सुनना और इनको ख़ुशी देना, जैसे मुझे भी एक नई जिंदगी सी मिल रही हो। “

पर वो कहते है न कि जिंदगी कभी आसान नहीं होती और वही धीरज और मेरे साथ भी हुआ।
लास्ट ईयर हमने मेरे सास ससुर यानि की धीरज के मम्मी पापा को भी खो दिया।

वो बड़ा ही बुरा वक़्त था जब हम पर ये बिजली टूटी थी।

मैं और मेरे पति धीरज घूमने के लिए मंसूरी गए थे। हमारी शादी की सालगिरह थी। ये गिफ्ट हमे मम्मी पापा की ओर से ही मिला था।
मैं बहुत खुश थी। एक लम्बे टाइम बाद हमे साथ समय बिताने का मौका मिला था।

मैंने तो अपने मन में न जाने क्या क्या ख्वाब भी बुन लिए थे।
और इस बार अपर्णा जैसे अतीत में पहुंच गयी।

उस दिन बर्फ के बदलो से ढकी पहाड़ो की चोटी, ठंडी सरसराती हवा हमे अपने में मदहोश कर देने वाली थी।
बाहर चलती सर्द हवाओं में कैसे हम दोनों को एक दूसरे की नजदीकी का एहसास हमारी तेज तेज चलती गर्म साँसे करा रही थी।

मेरा हाथ पकड़कर धीरज ने वहां कितना खूबसूरत गाना भी गाया था।
ऐसा लग रहा था जैसे मैं सातवें आसमान पर हूँ और मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

तभी धीरज के फ़ोन की घंटी बजी और हमे किसी ने एक इमरजेंसी मैसेज दिया “जल्दी घर पहुँचो , यहाँ कुछ हुआ है। “
आज भी वो वक़्त सोचती हूँ तो दिल दहल जाता है। हम लोग उलटे पाव कैसे भागे थे वापिस।

टिकट भी नहीं मिली थी बस की ,और हमने आनन-फानन में न जाने कैसे मुश्किल से एक टैक्सी की थी।
क्या हुआ है कुछ पता भी नहीं था। माँ पापा का फ़ोन भी नहीं लग रहा था। पूरा रास्ता हमने कैसे बिताया था हमे ही मालूम है बस।

जैसे तैसे घर पहुंचे तो सामने इनके मम्मी पापा की लाशें पड़ी थी। घर में चोर घुसे थे और बहुत सारा सामान इधर उधर बिखरा पड़ा था।
ऐसा लगता था के उन कातिलों का पापा मम्मी ने खूब सामना किया था।

गेट पर कदम रखते ही हम दोनों की चीख निकल गयी थी। फिर हमे कुछ याद नहीं क्या हुआ?
हम लोग पूरा दिन हॉस्पिटल में रहे थे।

पुलिस ने पोस्ट मार्टम के बाद उनकी बॉडी हमको दाह संस्कार के लिए दे दी थी और यहाँ आकर बस गए थे।
उन कातिलों का कुछ पता नहीं चल सका और पुलिस ने भी कारण लूट-पाट बता कर केस बंद करवा दिया।

तब से मेरे पति काफी उदास रहने लगे थे। मैं उनके मन की व्यथा समझ सकती थी पर कुछ कर नहीं पाती थी।
बस तभी से मैं उनको भी अपनी इस खुशी में शामिल करने का प्लान बना रही थी।

मैं इस बार धीरज को ऐसा गिफ्ट देना चाहती थी जो उनको उनकी अंतरात्मा तक खुशी दे सके।
और आज वो सही वक़्त आ गया है।
इसीलिए मैंने आज अपने मन की बात अपने दिल के बेहद करीब इंसान यानि कि मेरे पति से की है।
कि आप उदास मत हो मेरे जीवन साथी , ये दुनिया बहुत खूबसूरत है। बस एक नजर चाहिए।

मैं आपके साथ हूँ और पास भी हूँ। आप कभी अकेले नहीं हो।
हमेशा एक पति ही खुश करने के लिए अपनी पत्नी को कोई गिफ्ट क्यों दे , पत्नी भी तो दे सकती है।

और आपका गिफ्ट बस यही तो है।

धीरज हैरान हो कर बस सुने जा रहा था।

उसने सोचा भी नहीं था की उसकी बीवी का दिल इतने सोने का बना है जिसमें सबके लिए बस प्यार ही प्यार है।

और देखो तो उसको इस बात का पता भी नहीं था।

धीरज बहुत ख़ुश था उसने अपर्णा से कहा, “तुम तो दिल के मामले में मेरे से भी अमीर निकली। , लोग अपने अजीज को यहाँ मरने के लिए छोड़ जाते है और तुम उनको एक नई जिंदगी दे रही हो जबकि वो तुम्हारे अपने है भी नहीं। “

“किसने कहा ये मेरे अपने नहीं “, अपर्णा ने टोका। ” अब तो ये अपने ही है धीरज, मेरे दिल के बहुत करीब “

“बस ये थी मेरे मन की बात , जो मैं आपसे शेयर करना चाहती थी। , बस और कुछ नहीं। “

“और यही आपका जन्मदिन का उपहार भी है , अगर आप सब समझ गए है तो। ” , अपर्णा मुस्कुराई।

धीरज अपने आप को दुनिया का बहुत खुशकिस्मत इंसान मान रहा था।

उसके माँ बाप आज इस दुनिया में नहीं थे पर अपर्णा के कारण उसे उसके जन्म दिवस पर इतने सारे लोगो का प्यार और आशीर्वाद जो मिल गया था। इससे बड़ा गिफ्ट उसके लिए और क्या हो सकता था।

घर वापिस लौटते हुए उसके मन में बस यही बात चल रही थी कि-

“काश! सभी लोग ऐसा सोचे।

सभी अपने घर या बाहर वृद्ध लोगो से थोड़ा बातचीत करे , उनको थोड़ा टाइम दे , उनके मन कि बातो को जाने और सुने तो ये वृद्ध आश्रम हो ही नहीं।

और ये लोग भी हमारी तरह एक नई जिंदगी ख़ुशी से, बिना तकलीफ के जी जाये।”

आप सभी को मेरी ये कहानी कैसी लगी? आप इस बारे में क्या सोचते है? हमे जरूर बतलाये।
कृपया अपनी प्रतिक्रिया कमैंट्स के माध्यम से जरूर दीजिये।
आप अपने व्यूज नीचे दिए कमेंट बॉक्स में लिख कर मुझ तक पंहुचा सकते है।

-रूचि जैन

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4 Responses

  1. Shuchi Jain says:

    Beautifully written

  2. Parul Jain says:

    Nice story?

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