तुमसे मिलना अच्छा लगता हैं…

सावन की बरसती फुआरों मेंकुहुकती कोयलिया की आवाज के साथअमुवा की पेड़ की डाली के तलेखिलखिला कर तेरा वो मुस्कुरानामुझे अच्छा लगता हैं… जब तू ओढ़ लेती है सर पर दुपट्टा शरद मेंऔर दुपक जाती है सकुचाके मेरी बाहो मेंतेरी ठण्ड से लाल हुई नाक, गालो का गुलाबीपनऔर तेरा वो उंगलियों से उंगलियों को दबानामुझे अच्छा लगता है …. फूल झरने लगते है जब भीऔर नई कोपले फूट पड़ती हैचहचहाती...