Poems कशमकश जंगलो में घूमता फिर रहा था रात दिन रास्ता मुझको कोई समझ आया नहीं गुम था मैं इन दरख्तों की घानी आबादी में कही होश काफिर को अब तलक आया नहीं Share this:PrintTwitterFacebookWhatsAppMoreLinkedInTumblrTelegramRedditPocketPinterest June 2, 2021