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2020 शिकायतें कम शुक्रिया ज़्यादा या शुक्रिया कम शिकायतें ज़्यादा

2020 शिकायतें कम शुक्रिया ज़्यादा या शुक्रिया कम शिकायतें ज़्यादा –

पूरे वर्ष को एक कविता के माध्यम से व्यक्त करने का मेरा प्रयास … आशा है आप सभी उत्साहित करेंगे… 

शिकायतें कम करुँ या शुक्रिया ज़्यादा
या शुक्रिया कम करुँ शिकायतें ज़्यादा
रह रह कर सोच रहा है मन
एक एक मोती शुरू से पिरो रहा है मन

माह जनवरी, फरवरी और मार्च:

जनवरी और फरवरी की तो बात ही निराली थी
अजब गजब कर डालूंगा इस साल मन में ये ठानी थी
नहीं पता था विधाता कुछ और ही चाह रहा था
एक बुरी और बड़ी खबर लिए मार्च का महीना आ रहा था

किसी को दिया बहुत कुछ, तो किसी से ले लिया सभी
-देश को भयावह स्थिति में छोड़ दिया तभी
२१ दिन का लाकडाउन सुन के मन घबराया
दूर हो गए अपनों से , कोरोना ने ऐसा जाल बिछाया

जो जहा है वही रहेगा , जो जहा है वही रहेगा
ऐसा सन्देश सुनाया
मेरे देश की धरती पर कैसा सूनापन छाया
सड़के थी वीरानी, घरो में कैद हुआ जन जन
कोई नहीं पढ़ पाया एक दूजे का अंतर्मन

सबने अपने मन में सकरात्मकता दिखलाई
पूरा परिवार साथ सुखी है ये कयास लगाई
धीरे धीरे बीता टाइम, खुद से घर सीचेंगे
ना ही कोई बाई चाहिए, कम में संतोष करेंगे.
लोगो को फिरसे प्यार से रहना सीखा दिया
देशभक्ति के धागे में पिरो के दिखा दिया..

शिकायतें कम करुँ या शुक्रिया ज़्यादा
या शुक्रिया कम करुँ शिकायतें ज़्यादा
रह रह कर सोच रहा है मन
एक एक मोती शुरू से पिरो रहा है मन

माह अप्रैल , मई और जून :

माह अप्रैल और मई ऐसे ही निकल गए
बच्चो की पढाई और लोगो के दफ्तर ही घर बन गए
समय पंख पसारे उड़ा जा रहा था
पीछे पीछे जून का महीनाआ रहा था
कुछ नया साथ लिए , कुछ अनोखी बात लिए..
सड़के अब खुलने लगी थी पर डर अभी भी साथ था
एक दूजे की फ़िक्र करना अब तो आम था

कभी तो हम किसी से फोन भी ना मिलते थे
अब तो फोन ही बनगए थे जिंदगी , अपने बहुत यादआ रहे थे
दूर हुए लोगो को फिर से मिलना सीखा दिया
ए वर्ष २०२० तूने बहुत कुछ सीखा दिया

शिकायतें कम करुँ या शुक्रिया ज़्यादा
या शुक्रिया कम करुँ शिकायतें ज़्यादा
रह रह कर सोच रहा है मन
एक एक मोती शुरू से पिरो रहा है मन

माह जुलाई, अगस्त, सितम्बर, ऑक्टूबर और नवम्बर :

जुलाई माह की बड़ी सुखद हुई अगुवाई
भीनी मिटटी की खूशबू , वातावरण में छाई
रिमझिम , टपटप करती बूंदो ने कैसा जादू छाया
प्रदुषण जो दूर हुआ था उसका असर दिखाया

अब तक सारी दुनिया जीना सीख गई थी
कोरोना से लड़ने को घर से निकल पड़ी थी..
अगस्त, सितम्बर और ऑक्टूबर बहुत कुछ बतला गए थे
हर एक पल हर एक दिन जीना सीखा गए थे
त्योहारों की चहल पहल में लोग कोरोना भूले
शादी , उत्सव और समारोहों के चक्कर में दौड़े

आया शोर दिवाली का भी , फिर से कोतुहल छाया
लो जी कैसे बीता साल, नवम्बर का महीना आया..
सजने लगे घर और बाजार, डर को सबने दूर भगाया
आस्था रखी भगवान में , घर को ही मंदिर बनाया
डट कर करें मुकाबला, अब जो भी होगा देखा जायेगा
कब तक जीए डर डर के, जो होना होगा सामने आएगा

मजबूत इरादों को तुमने और पकाना सीखा दिया
ऐ साल २०२० तुमने क्या से क्या बना दिया

शिकायतें कम करुँ या शुक्रिया ज़्यादा
या शुक्रिया कम करुँ शिकायतें ज़्यादा
रह रह कर सोच रहा है मन
एक एक मोती शुरू से पिरो रहा है मन

माह दिसंबर :

भ्रम में है मन , करुँ क्या मैं यतन
जा रहा है साल करके मनमानी
दिसंबर भीअब जाने वाला है
नया साल आने वाला है
बस तुम जाते जाते इतना आशीष देते जाना
जो गम मिला तेरे आँचल में उसे अगले साल खुशी में बदल जाना
वर्ष २०२१ एक नया रूप लेके आये
जिसको न मिला कुछ उसे सबकुछ मिल जाये
हाथ जोड़ सभीके लिए यही दुआ करुँगी
सब खुश और आबाद रहे यही कह रहा है मन

2020 शिकायतें कम करुँ या शुक्रिया ज़्यादा
या शुक्रिया कम करुँ शिकायतें ज़्यादा
रह रह कर सोच रहा है मन
एक एक मोती शुरू से पिरो रहा है मन

-रूचि जैन 

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2 Responses

  1. Anonymous says:

    अति उत्तम कविता???✍️

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