मैं प्यार के दीये जलाने गई थी
रिश्तो की डोर निभाने गई थी
हाथो में बंधा जो वो प्यार है हमारा
मैं रक्षा बंधन मनाने गई थी
ना खत लिखा था , ना पैगाम कोई
मेरे भाई का लिखा है दिल पे नाम कही
आज वो मेहँदी हाथो में लगाकर
तेरी बलइया उतारने गई थी…
हाथो में बंधा जो वो प्यार है हमारा
मैं रक्षा बंधन मनाने गई थी
एक अनोखा रिश्ता है ये हमारा
जैसे नदी की बहती कोई धारा
कितना भी लड़ले, या फिर झगड़ले
फिर से जुड़ जाता है ये बंधन प्यारा
जीता रह मेरा भाई तू सदियों
ऐसी इबादत मनाने गई थी
हाथो में बंधा जो वो प्यार है हमारा
मैं रक्षा बंधन मनाने गई थी
–रूचि जैन