विश्व कैंसर दिवस पर विशेष : मानव का संवाद कैंसर के साथ
मेरी कलम से
कुछ घाव हरे थे, कुछ पुराने हो चले थे
कुछ घाव गहरे थे , कुछ अब तक मिट चुके थे
पर मैं जीतूंगा , ये यकींन मेरे जज्बे में था
तू आया तो मिटाने ही था मुझे
पर तुझसे न मैं मिटूंगा
क्योकि एक अलग बात, जज्बात और हिम्मत मुझमें है
करके देख ले कोशिशे, अगर इतना दम तुझमें है…
कैंसर का संवाद –
डर मुझसे, मैं एक खौफ हूँ, हर किसी के मन का
लग जाऊ जो किसी को तो, तो मिटा दू तन उसी का
तू क्या कर लेगा, अपनी सोच को इतना साकार करके
हाँ, मैं आया हूँ मिटाने तुझे,
और मिटाके ही रहूँगा
क्योकि कुछ जंग जिंदगी की, अपना निशान छोड़ जाती है
जो केवल तन को ही नहीं, मन को भी घायल कर जाती है…
मानव का संवाद –
मत अकड़ इतना खुद पर , जकड तू अपनी तोड़ दे
मेरे अडिग मन से तू डर, जा जिद तू अपनी छोड़ दे
ये ब्रह्मांड मेरे साथ है, मेरे अपने मेरे पास है
स्वस्थ जीवन शैली का , वरदान मेरे पास है
जा चला जा , अब न कुछ भी छुंउगा
सादा जीवन मैं जीऊंगा,
लिप्सा में न पडूंगा..
अब बता कर लेगा क्या तू, तेरे निमित्त सब मैंने छोड़ें हैं
माना थोड़ी देर हो गई, फिर भी हिम्मत बाकि मुझमें है…
कैंसर का संवाद –
तू बड़ा हठी और हिम्मती है,
मुझे अफ़सोस न इतना भी
तेरे जज्बे की कद्र करूँगा
जा आजादी तुझको दी
तू ही लाया मुझको खुद तक
मेरा कोई दोष नहीं
मृदा, तम्बाकू , धूम्रपान से , क्यों तेरा कोई बैर नहीं
जो नही चाहिए मेरा क्रदन , तो स्वस्थ जीवन तुम अपनाना
ए मानव तू तो भुगता है ,अब जाकर सबको समझाना,
जो नहीं बचे , मेरे वार से
उनको इतना ही बतलाना
न डरना , बस हिम्मत से लड़ना
प्यार , दुलार , तुम उनपर बरसाना
देखो फिर कैसे कठिन जंग वो
कुछ पल में जीत दिखा देंगे
कैंसर से लड़ते हर इंसा के लिए, एक नया आदर्श बना देंगे…
जो ना दोगे, जो ना दोगे , अपना साथ उन्हें तो
कैंसर तो उनको क्या मारेगा
अपनों से ही हार चुकेंगे,
अपना ही अपने को मारेगा
बस यही सन्देश आखिरी मेरा, इस दुनिया के जन जन से है
नशा मुक्त हो संसार हमारा, ये अभिव्यक्ति मेरे भी अंदर है…
-रूचि जैन
After “मानव का संवाद कैंसर के साथ” , Read my other Hindi poems : “भ्रष्टाचार“, “मेरा दूरदर्शन“,”2020 शिकायतें कम शुक्रिया ज़्यादा या शुक्रिया कम शिकायतें ज़्यादा“
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