मातृत्व का एहसास
मेरी कलम से
तेरी नाजुक हथेलियों को छूती हूँ जब भी,
हौले से एक मुस्कान आ जाती है मुख पे
तेरे नन्हे नन्हे पाँव चलते है जब भी ,
एक मीठी सी आह छा जाती है दिल में…
तेरा नाजुक बदन,
तेरा हर कोमल अंग ,
तेरी वो मीठी किलकारियों का बिखरना
मेरे हर एक शब्द को निःशब्द करता,
तेरी उन अठखेलियों का करना न करना
जब तू हौले से आवाज मुझको लगाता,
उस पल खुशी से भीग जाती मेरी आँखें…
अपनी टिमटिमाती आँखें तू खोलता है जब भी,
तेरी आँखों में अपना अक्श देखना चाहे मेरी आँखें…
तेरी नन्ही सी अंगुली से मेरी अंगुली पकड़ना,
तेरे हर एक स्पर्श को महसूस करना
तेरी तिरछी निगाहे ,
तेरा वो भोलापन ,
तेरा मासूमियत से यूँ हुँकारे भरना
मेरे तन मन को सराबोर करता ये बचपन ,
बंद पलकों को एकटक निहारे ये आँखें…
तेरी हर एक धड़कन में बसती मेरी धड़कन,
तुझे नींदो में भी क्यों ढूंढे मेरी आँखें …
-रूचि जैन
After read “मातृत्व का एहसास” , Read my other Hindi poems : “उड़ान बाकि है” , “मेंरी जिंदगी भी तो एक खुली किताब ही है“
Read my English poems : “Cloud’s Pain“, “Mother Earth“