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माँ, क्या तुम वाकई चली गयी हो

माँ, क्या तुम वाकई चली गयी हो

माँ, क्या तुम वाकई चली गयी हो?

ये कविता मैं मेरी सासु माँ को समर्पित करती हूँ | जो कि अब हमारे बीच नहीं है। … Love you maa

मेरी कलम से 

माँ, आप, जो कभी हमारे पास थी
जिनके होने में कुछ तो खास बात थी
जो सभी दिलों को जोड़ देती थी
आप वो गूंजती, कोई आवाज़ थी
अब तो खाली कमरा भी, घूरता है रह रह कर
जैसे कुछ कहना चाहता हो मुझसे
मन सोच के घबरा जाता है
माँ, क्या तुम वाकई चली गयी हो ?

क्यों ऐसा होता है?
क्यों हमें अपनों को खोना होता है?
न जाने क्यों दर्द साथी बन जाता है?
क्यों जीने की चाहते भी , साथ ले जाता है?
पता है अब ना वापिस आओगी
यूँ ही हमे दर्द में तड़पाओगी
बस इतना सा भ्रम हमे दे जाते
अपने लिए थोड़ा तो कुछ करा जाते…
पर आप तो, यूँ ही चल दिए बिना कुछ बोले
सबके दिलों में खालीपन का जख्म दे कर
मन सोच के घबरा जाता है
माँ, क्या तुम वाकई चली गयी हो ?

काश! हम बता पाते की, हमे आपसे कितना प्यार है
आपकी जरुरत जिंदगी में हर बार है
बस एक यही कसक दिल में रह गई
काश ! यूँ जाने ना देते, और तुम को रोक लेते हम…
उन पलों को जीने के लिए
जो अब जिंदगी भर बस हमारे दिल में अधूरे ही रहेंगे…
अधूरे ही रहेंगे…
और बस रह जाएगी तो सिर्फ वो हसीन यादें…
आपके साथ की…
और आपकी हर बात की…

-रूचि जैन 

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2 Responses

  1. Reena Jain says:

    Heart touching poem♥️♥️

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