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भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार – हास्य व्यंग कविता 

मेरा एक छोटा सा प्रयास … 

भ्रष्टाचार भाई तेरा खेल अजब निराला है
हर किसी के खून को पानी कर डाला है
जैसे डलता है आटे में नमक, उतना भी काफी न था
पूरा आटा ही नमक में मिला डाला है…

काम बन जाये मेरा कैसे भी
हर सख्श इसी रास्ते पर है
रोक लो पैसे देके जेल जाने से
जमीर बिक रहा सस्ते में है

भारी बस्ता पैसो का
भारी बस्ता पैसो का,
अब एडमिशन मिलने वाला है
राशन की कतार खड़ी है
पर सब पिछले गेट से बिकने वाला है
भ्रष्टाचार भाई तेरा खेल अजब निराला है…

कोई क्षेत्र न छोड़ा इसने
डॉक्टर या कलक्टर हो
नेता बिकता पैसो में ही
पुलिस जेब के अंदर हो
केक के ऊपर टॉपिंग जैसे
केक के ऊपर टॉपिंग जैसे,
ये फैशन भ्रष्ट मतवाला है
भ्रष्टाचार भाई तेरा खेल अजब निराला है…

पांसे फेको गोटी बदलो
पांसे फेको गोटी बदलो,
हर टेंडर में घोटाले करलो
बिजली चोरी, टैक्स बचालो
आम जनता का पैसा खालो
टेबल के नीचे से अदला बदली
टेबल के नीचे से अदला बदली,
पर कुछ हजम न होने वाला है
भ्रष्टाचार भाई तेरा खेल अजब निराला है…

अब अंत में उसे छोड़ने पर जोर देते हुए कहा है –

क्यों करता है भ्रष्टगिरी तू
लटके पाव कबर में है
तुम बदलोगे तो सब बदलेगा
क्या ये हिम्मत तेरे अंदर है ?
“सब करते है”,
सब करते है , ऐसा कहकर अपनी मक्कारी मत दिखा
अगली पीढ़ी सीख रही है
उनके लिए ही एक मिसाल बन जा…
ये रौशनी का दीप तो किसी को जलना ही पड़ेगा…
राष्ट्र को बचाने का जिम्मा उठाना ही पड़ेगा…
वो एक,
वो एक हम ही क्यों नहीं
क्यों भ्रष्टाचार सब पर भारी है
पर विश्वास है ये
एक दिन…
भ्रष्टाचार भाई तेरी दुनिआ समाप्त होने वाली है…

-रूचि जैन 

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