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पूछती है वादियाँ

पूछती है वादियाँ

थल सेना को समर्पित : पूछती है वादियाँ

एक सैनिक की जुबानी उसके दिल की बात...

मेरी कलम से  

गरजता और बरसता , बस यूँ चला जा रहा हूँ मैं,
दुश्मनो के सीने को, चीरने की तमन्ना दिल में हैं…
पूछती है वादियाँ , और पूछती है सरहदे ,
वो बला की ताकते और हिम्मते क्या तुझमें है…

तोड़ दूंगा सब हदो को, मेरी सरहदे जो तूने पार की
इस वतन की मिटटी को न , छू कभी तू पायेगा
बम के बदले बम मिलेगा, तेरा सर कलम कर दूंगा मैं
सब सहूंगा सीने पर अपने , पर दुश्मन तू गोली खायेगा
हूँ निडर
हूँ निडर , दिल में है तूफ़ा, गजब हौंसले सीने में है
पूछती है वादियाँ , और पूछती है सरहदे
वो बला की ताकते और हिम्मते क्या तुझमें है…

एक माँ ने जन्म दिया है , एक माँ ने आसरा
कर्ज दोनों का है मुझपर, क्या फर्ज़ ये निभ पायेगा
मर मिटूंगा माटी पर अपनी, बढ़ाऊंगा तिरंगे की शान मैं
लहू बनकर जब बहेगा दूध , तेरा कर्ज खुद चुक जायेगा
हूँ सजग
हूँ सजग, हुँकार दिल में, स्वाभिमान सीने में है
पूछती है वादियाँ , और पूछती है सरहदे
वो बला की ताकते और हिम्मते क्या तुझमें है…

और अब अंत में, एक दीवाना, जिसके दिल में हिन्द है और मौत आँचल में लिपटी हैं। क्या कहता है –

छोड़कर रिश्ते वो सारे , तोड़ कर वो बेड़िया
बढ़ चला हूँ अग्निपथ पर, क्या अग्नि ये बुझ पायेगी
सर्द रातों में कटूँगा , गर्म दिन में मैं बढूँगा
अमन , शांति के लिए , भेंट मैं चढ़ जाउँगा
सजी धजी मौत से जब मिलूंगा मैं गले
शांत होगा ह्रदय मेरा, आक्रोश तब मिट जायेगा
हूँ दीवाना
हूँ दीवाना, हिन्द दिल में, मौत लिपटी आँचल में हैं
पूछती है वादियाँ , और पूछती है सरहदे
वो बला की ताकते और हिम्मते क्या तुझमें है…

गरजता और बरसता , बस यूँ चला जा रहा हूँ मैं
दुश्मनो के सीने को, चीरने की तमन्ना दिल में हैं…

-रूचि जैन 

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