चारो तरफ जश्न का शोर था। और मैं अपने एक अलग ही खुशी के खुमार में थी।
मेरी बेटी को अपनी पहली फिल्म जो मिली थी।
मेरी बेटी रावी एक बाल कलाकार थी। ४ साल की रावी दिखने में बहुत खूबसूरत और प्यारी थी।
मुझे आज भी याद है की मैंने कैसे कैसे हाथ-पैर मारकर उसे वो २-३ Ads दिलवाये थे। आज पुरे २ साल बाद जब वो ६ साल की हो गई है उसे एक फिल्म में बाल कलाकार का रोल मिला हैं।
मेरे तो जैसे पंख ही लग गए है। एक अलग ही अंदाज हो चला है। आज उसी फिल्म की खुशी में मेरे घर एक छोटी सी पार्टी है।
“सरिता तुम यहाँ हो। कब से ढूढ़ रहा हूँ। जल्दी बाहर आओ , मेहमान इंतजार कर रहे है। “, मेरे पति सिद्धार्थ की आवाज ने मेरा ध्यान तोडा।
“हाँ ! आती हूँ। “, और मैं बाहर की ओर चल पड़ी।
तभी कुछ ध्यान आया और मै रुक गई। , “अरे ! नर्मदा को कॉल भी तो करना है अभी तक क्यों नहीं आई है। सब मेहमान आ गए और मैडम का कुछ पता नहीं। “
नर्मदा रावी की केयरटेकर थी साथ ही घर का काम धाम भी देखती थी। आज वो अभी तक नहीं आई थी तो सरिता को चिंता होने लगी थी।
सरिता ने नर्मदा को फ़ोन मिलाया , “कहा हो तुम , आई क्यों नहीं अभी तक। कितनी देर हो गई है , सब लोग आ गए है , जल्दी आओ। “, सरिता ने बिना कुछ पूछे एक लाइन में अपनी बात कह डाली और फ़ोन रख दिया।
उसने नर्मदा का जवाब सुनना भी जरुरी नहीं समझा और न ही कुछ जानने की कोशिश की।
“आज तो एक मिनट की फुर्सत नहीं है और ये लोग देखो समझते ही नहीं। ” , कुछ बड़बड़ाती हुई वो बाहर आई।
“बधाई हो मैडम , बधाई हो। “
“अब तो बड़े लोग हो गए हो आप लोग। “
“आज आपकी मेहनत सफल हो गई। “
सब लोग उसे बधाइयाँ दिए जा रहे थे और वह खुशी से कुप्पा हो चुकी थी। उसे अपनी जिंदगी में आये इस परिवर्तन से एक अलग ही खुशी मिल रही थी।
नर्मदा का अपनी बेटी को साथ लाना –
अचानक उसकी नजर गेट पर गई , जहाँ नर्मदा अपनी ८ साल की बेटी को लेकर खड़ी थी।
उसे देख सरिता गेट पर लपकी , “अब आ रही हो तुम ? और इसे क्यों ले आई साथ ?
आज कितना काम है नर्मदा और तुम समझती ही नहीं।”
“मैडम, मै बीमार हूँ। बुखार है मुझे। आपने फ़ोन रख दिया तो मुझे बुखार में ही आना पड़ा।
ये मेरी बेटी है। थोड़ा हेल्प कर देगी इसीलिए साथ ले आई हूँ इसको।
आपका भी काम हो जायेगा।”, नर्मदा ने अपनी सफाई में कहा।
“ये मदद करेगी? ८ साल की बच्ची ? तुझे हो क्या गया है ? “
“नहीं मैडम जी इसे सब आता है, मेरा बहुत ध्यान रखती है अभी से। , मजबूरी है मैडम जी, क्या करे? हम गरीब लोग है। “, नर्मदा ने सरिता से कहा।
“अच्छा ठीक है , ठीक है , जाओ अंदर जाकर काम देखो।”, और सरिता तुनकती हूँ वहां से चली गई।
और कब शाम से रात हुई पता ही नहीं चला।
पूरी पार्टी में सरिता की निगाह उस छोटी सी लड़की पर थी जो एक ट्रे में पानी के गिलास लिए सब मेहमानो के आगे घुमा रही थी।
“पार्टी अच्छे से हो गयी , सब मेहमान चले गए।”, सरिता ने कमरे में आकर सुस्ताते हुए अपने पति सिद्धार्थ से कहा।
“बहुत थक गयी हूँ मै। “
“इतना सब की जरुरत क्या थी ? इतना शोऑफ क्यों ?
मुझे तो रावी की चिंता है , वो फिल्म और पढाई एक साथ कैसे करेगी। “, सिद्धार्थ ने चिंता की रेखाएं माथे पर लाते हुए कहा।
“अरे सब हो जायेगा। ये भी तो देखो कितने बड़े बड़े लोग आये थे।
अब हमारा स्टेटस कहा से कहा पहुंच गया है। , रावी अब कोई साधारण लड़की नहीं रही। वो एक कलाकार बन चुकी है। “, सरिता ने खुशी भरे अंदाज में अपने बालो को सवारते हुए कहा।
“हाँ सब देख रहा हूँ “, कहते हुए सिद्धार्थ चुप हो गया और उसने इस बात पर अभी और आगे बात न करना सही समझा।
उसे किसी परिवर्तन की कोई आशा नहीं दिख रही थी।
दोनों कपडे बदल कर सोने के लिए लेट गए।
सरिता और सिद्धार्थ का संवाद –
सरिता के आँखों के आगे फिर उसी छोटी सी बच्ची का भोला सा चेहरा घूमने लगा।
वो अपने पति सिद्धार्थ से बोली , “आज नर्मदा ने अच्छा नहीं किया।
बीमार थी तो किसी और को भेज देती। अपनी आठ साल की बच्ची को ले आई यहाँ काम कराने।
छोटी सी बची कैसे ट्रे घुमा रही थी। उसके छोटे छोटे हाथो से ट्रे गिर जाती तो।
नर्मदा को उससे ये सब नहीं कराना चाहिए। अरे उसके तो पढ़ने-खेलने के दिन है।
कल उससे बात करती हूँ कि आगे से ऐसा हो तो उस छोटी सी बच्ची को न लाये।
इतने छोटे बच्चे से भी कोई ये सब काम करता है क्या ?”
“हाँ ! तुम”, सरिता की बात बीच में काटते हुए उसके पति सिद्धार्थ ने बोला।
“तुम भी तो अपनी ६ साल की बच्ची से काम करवा रही हो, क्या उसके खेलने के दिन नहीं है।
अगर तुम करा सकती हो तो फिर वो क्यों नहीं।
वो तो फिर भी मजबूर है पर तुम्हारी क्या मजबूरी है ?”, सिद्धार्थ ने बोलना चालू रखा।
“तुम भी तो वही कर रही हो जो तुमको गलत लग रहा है।
खुद ही सोचो क्या जिंदगी बना रही हो तुम अपनी नन्ही सी बेटी की। ये फेम अभी शुरुवात में तो अच्छा लग रहा है पर एक दिन ये उसकी छोटी सी जिंदगी से सुकून छीन लेगा और जिसकी जिम्मेदार सिर्फ तुम होगी सरिता। “
और फिर वह पीठ फेर कर सो गया एक अनकहा सवाल सरिता के मन में छोड़कर।
सरिता में परिवर्तन –
पूरी रात सरिता को जैसे नींद ही नहीं आई।
क्या वो भी गलत कर रही है ?
पूरा दिन उंधेड्बुन करती रही।
फिर समझ ने दिमाग के दरवाजे पर दस्तक दी।
“अरे हाँ ये क्या कर रही हूँ मैं?
मुझमें और नर्मदा में यही तो अंतर है बस के वो बेचारी मजबूरी में अपनी छोटी सी बेटी को ले आई थी, पर मेरी क्या मजबूरी है। मै इतना अँधा कैसे हो गई?
जो मुझे दूसरे के लिए गलत लग रहा है, मै भी तो वही कर रही हूँ, और शायद उससे भी ज्यादा बुरा।”
तुरंत उसका हाथ अपने फ़ोन पर चला गया और बस एक फ़ोन कॉल और सब ख़तम।
“पर मुझे संतुष्टि है अब, मैंने अपनी बच्ची को एक नरक से बचा लिया। “, सरिता शीशे के आगे बैठी बुदबुदाई।
“बिलकुल सही किया तुमने सरिता। तुम एक अच्छी माँ हो, जिसे ये बात जल्दी समझ आ गई। “, सिद्धार्थ उसके पीछे आ खड़ा हुआ और उसका कन्धा खुशी से थपथपाया।
“मैडम जी मै ले आई अपनी बेटी को, कहिये आप क्या बोल रही थी।”, नर्मदा की आवाज उसके कानो में पड़ी।
सरिता और सिद्धार्थ दोनों मुस्कुराते हुए बाहर आये और फिर सरिता नर्मदा से बोली, ” तुम्हारा धन्यवाद नर्मदा ! तुम्हारी बेटी के कारण मैं कुछ गलत करने से बच गई , इस नन्ही सी बच्ची ने मेरी आँखे खोल दी। “
“कल से ये भी स्कूल जाएगी और इसका सारा खर्चा हम लोग उठाएंगे। “
सिद्धार्थ को तो जैसे यक़ीन ही नहीं हुआ। सरिता में आये इस परिवर्तन को देख कर वो हैरान था। क्योकि इस छोटी बच्ची ने वो कर दिखाया था जो वो भी नहीं कर पाया था।
सरिता बहुत खुश और संतुष्ट थी और सिद्धार्थ को देख कर धीमे धीमे मुस्कुरा रही थी।
परिवर्तन:- आप सभी को मेरी ये कहानी “परिवर्तन” कैसी लगी? क्या सरिता ने सही किया? आप इस बारे में क्या सोचते है? आप हमे जरूर बतलाये।
क्या बच्चो का काम करना सही है ? कृपया अपनी प्रतिक्रिया कमैंट्स के माध्यम से जरूर दीजिये।
आप अपने व्यूज नीचे दिए कमेंट बॉक्स में लिख कर मुझ तक पंहुचा सकते है।
-रूचि जैन
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