Pearl In Deep
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तेरे जैसा प्यार कहाँ part – 6

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि आन्या को महसूस होता है कि कोई साया उसको छुप छुप कर देख रहा है। पर उसको कोई दिखाई नहीं देता।
इन्दर मौसी से आन्या के बारे में पूछता है और उससे मंदिर पर उसकी मुलाकात होती है। दोनों साथ कॉफ़ी पीते है और बाते करते है। इन्दर आन्या को घर छोड़ता है। अब आगे –

आन्या को घर के गेट में घुसते हुए महसूस होता है के कोई झाड़ियों के पास से उसे देख रहा है। वो पलट कर देखती है पर उसे कुछ नजर नहीं आता।
आन्या अंदर चली जाती है।

आन्या कि मौसी आन्या का ही इंतजार कर रही होती है।

“अरे ! आन्या तुम आ गई ? बहुत देर हो गयी? आओ बैठो , मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। , मैं अभी तुम्हारे मौसा जी को भेजने ही वाली थी।”

“हाँ मौसी , वो मुझे मंदिर पर इन्दर मिल गया था अपने दोस्त के साथ। वो लोग भी मंदिर आये थे। इन्दर ने मुझे कॉफ़ी के लिए पूछा तो मैं मना नहीं कर पाई। बस इसीलिए थोड़ा देर हो गयी। “, आन्या ने सोफे पर बैठते हुए कहा।

“अच्छा अच्छा , कोई बात नहीं , ये सब तो चलता रहता है। “, मौसी ने मुस्कुराकर अनजान बनते हुए आन्या को छेड़ते हुए कहा।

उन्होंने आन्या को नहीं बताया के इन्दर को मंदिर पर उन्होंने ही भेजा था।

“मौसाजी और ध्रुव सो गए क्या ? मुझे वाकई बहुत देर हो गई न ?”, आन्या ने चारो और देखते हुए पूछा।

“नहीं वो लोग कमरे में है। तुम बताओ कैसा रहा दिन ? वैसे कैसा है वो ? क्या बातें हुई ? मुझे नहीं बताओगी ?”, मौसी ने थोड़ा मुस्कुराते हुए पूछा।

“कुछ नहीं मौसी बस इधर उधर कि बातें , मेरे बारे में पूछ रहा था वो के मैं कहा रहती हूँ, और घर के बारे में, घर पर कौन कौन है आदि आदि। , और कोई बात नहीं हुई मौसी “, आन्या ने थोड़ा झिझकते और शरमाते हुए कहा।

“हा हा हा , तुम कितना शर्माती हो आन्या , कितनी भोली और प्यारी लग रही हो , फिर तुम पर कोई क्यों न रीझे —, मुझे तो लगता है अब तुम भी उसको पसंद करने लगी हो , है न ?”, मौसी ने हॅसते हुए कहा।

“नहीं मौसी ऐसा कुछ नहीं है , अभी तो हम दोस्त भी नहीं बने , पसंद तो बहुत बाद कि बात है।”, आन्या ने अपनी भावनाओ को थोड़ा छुपाते हुए कहा।

“अच्छा ठीक है , जैसा तुम बोल रही हो मान लेती हूँ। मगर फिर भी मुझे जो लगता है देखना वही सच होगा। चलो अब सोया जाये। कल मुझे जल्दी जाना है कैफे पर। एक ऑफिस आउटिंग का आर्डर मिला है। उसकी तैयारी करनी है जाकर। “

“मौसी , क्या मैं भी आऊं आपके साथ सुबह ? आपकी हेल्प हो जाएगी। “

“नहीं आन्या , तुम थोड़ा देर से ही आना , वैसे भी तुम थकी हुई लग रही हो। वैसे मैंने और लड़को को बुलाया है हेल्प के लिए। चलो बाय गुड नाईट। “, कहकर मौसी अपने रूम में चली जाती है।

आन्या कुछ देर बैठी इन्दर के बारे में सोचती रहती है। उसकी बाते उसके दिमाग में बार बार घूम रही है।
फिर वो उठ कर अपने रूम में चली जाती है।
कपडे बदलकर थोड़ा फ्रेश होकर अपने बिस्तर पर गिर पड़ती है।

“आज थकान महसूस हो रही है। कल के बुखार के बाद आज आराम करना चाहिए था मुझे। कही दुबारा बुखार न आ जाये , फिर कैफे भी नहीं जा पाऊँगी। “, आन्या ने मन ही मन बुदबुदाया।

सोने के लिए लेटने के बाद भी नींद आन्या की आँखों से कोसो दूर थी। उसके मन में तो बस इन्दर से हुयी आज की बातें ही घूम रही थी। उसने इतनी बेचैनी पहले कभी महसूस नहीं की थी। उसका दिमाग बहुत अशांत था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ?
बिस्तर पर लेटे लेटे खुद से ही बातें किये जा रही थी आन्या।

“वैसे इतना भी बुरा नहीं है वो। पर पता नहीं क्यों अब किसी पर विश्वास करने का मन नहीं बना पा रही हूँ।
मानव का जब रिश्ता आया था तब मैंने न जाने कितने ही सपने बुन लिए थे मन में। मैं तो मानव से केवल एक बार ही मिली थी बस। तब भी रिश्ता टूटने पर मुझे कितनी तकलीफ हुयी थी। इतना ज्यादा आहत हुई थी मैं कि आजतक नहीं संभल पाई हूँ।

फिर इन्दर को दोस्ती के लिए भी कैसे हाँ कर दू। इन्दर तो न जाने कितनी ही बार मुझसे मिल चुका है, भले ही कैफे में मिला हो।
वो बार बार मुझसे दोस्ती करने के लिए कहता है पर कैसे हाँ कहूं जबकि मैं जानती हूँ के उसके मन में केवल दोस्ती वाली बात नहीं है। किसी भी बात के लिए आगे बढ़ने से पहले विश्वास की डोर भी तो मजबूत होनी ही चाहिए।
अगर इस बार मेरा दिल टूटा तो मैं बर्दास्त नहीं कर पाऊँगी। “

आन्या बहुत समझदार थी। वो हर बात को गंभीरता से सोच रही थी।
कि तभी बहुत तेज शीशा टूटने कि आवाज होती है और एक पत्थर खिड़की का शीशा तोड़ता हुआ अंदर आकर गिरता है।
आन्या डर के उठ बैठती है।

कमरे में थोड़ा अँधेरा होने के कारण उसे वो पत्थर कहा गिरा ये नजर नहीं आता। वो धीरे से उठ कर चारो और देखती है उसे कुछ नजर नहीं आता। डर के कारण उसकी खिड़की तक जाने कि भी हिम्मत नहीं होती है। तभी गेट पर आवाज होती है।
आन्या और ज्यादा डर जाती है। फिर भी वो हिम्मत करके पूछती है, “कौन है ?”

“मैं हूँ आन्या, मौसी , क्या हुआ ? सब ठीक तो हैं न ? कुछ टूटने कि आवाज आई मुझे नीचे”, मौसी थोड़ा तेज आवाज में बोलती है।

मौसी कि आवाज सुनते ही आन्या पलंग से दौड़ के उठती है और दरवाजा खोल देती है। और मौसी को देखते ही उनसे लिपट कर रोने लग जाती है।
“क्या हुआ आन्या ? सब ठीक तो है ? तुम रो क्यों रही हो ? चलो अंदर चलो और बताओ क्या हुआ अभी ?”, मौसी आन्या को शांत कराते हुए बोली।

आन्या चुप होकर अंदर आती है। मौसी कमरे की लाइट जलाती है। कमरे में टूटे कांच के टुकड़े देखकर उनकी नजर खिड़की पर जाती है।
वो नजदीक जाकर झाँक कर देखती है पर कुछ नजर नहीं आता। कमरे में भी आस पास कुछ नजर नहीं आता।

वो चिंतित होकर आन्या से पूछती है , “ये सब क्या है ? किसने किया ?”

“मुझे कुछ नहीं पता मौसी। मैं तो सोने के लिए लेट गयी थी के अचनाक कुछ आकर शीशे पर टकराया। मैं तो बहुत डर गयी थी मौसी। अच्छा हुआ आप आ गयी वरना पता नहीं क्या होता मेरा “, आन्या ने सहमे हुए कहा।

मौसी बोली, “अभी तुम चलो मेरे साथ। इसको कल देखते है। अभी तुम नीचे ही मेरे बराबर वाले कमरे में सो जाओ। यहाँ अकेले सोना ठीक नहीं जब तक ये खिड़की का कांच ठीक नहीं हो जाता।”

“मौसी मैं नीचे भी अकेले नहीं सोऊंगी। आज प्लीज आप मेरे साथ सो जाइये न। “, आन्या ने डरते हुए कहा।

“अच्छा ठीक है , तुम नीचे तो चलो। “

और फिर वो दोनों उस कमरे की लाइट बंद करके नीचे चले जाते है। बेड के नीचे पड़े उस पत्थर पर दोनों में से किसी का ध्यान नहीं जाता।

अगली सुबह –

मौसी तैयार होकर जल्दी कैफे के लिए निकल जाती है। आन्या अभी तक सोई हुई है।
अधखुली नींद में उसका हाथ अपने बराबर में सोई मौसी को ढूंढ़ने लगता है। मौसी को बराबर में न पाकर उसकी नींद अचानक से खुल जाती है और वो उठ के बैठ जाती है।

रात का पूरा वाकया याद आते ही वो चिंता से बेड से उठ खड़ी होती है और कमरे से बहार निकल कर लॉबी में आ जाती है।

“गुड मॉर्निंग आन्या , कैसी हो? “, लॉबी में बैठकर अख़बार पढ़ते उसके मौसाजी ने पूछा।

“हाँ, हाँ मैं ठीक हूँ मौसा जी, आप कैसे है ?”, मौसाजी की आवाज पर एक दम से चौकते हुए आन्या ने जवाब दिया।

“मैं भी ठीक हूँ , क्या हुआ तुम एक दम से डर क्यों गयी? ये मैं हूँ , रात वाला कोई अनजान शख्श नहीं।”, मौसाजी ने मुस्कुराते हुए कहा।

मगर आन्या के चेहरे को भावहीन देखकर वो समझ गए के ये सही समय नहीं मजाक करने का।
तो उन्होंने तुरंत बात को बदलते हुए गंभीरता से कहा , “आओ यहाँ बैठो , मुझे तुम्हारी मौसी ने सुबह सब बताया कि कल रात क्या हुआ। तुम इतना डरो मत।
हम लोग जहाँ रहते है वो थोड़ा सुनसान जगह है इसीलिए किसी रह चलते ने हमको डराने के लिए पत्थर वग़ैरा मार दिया होगा शीशे पर। वरना कोई क्यों खिड़की का कांच तोड़ेगा। मैं उसे आज ही ठीक करा देता हूँ। “

अपने मौसा जी कि बात सुनकर आन्या एक दम से चौंकती है , “पत्थर , क्या वाकई कोई पत्थर शीशे से टकराया होगा तभी कांच टूटा। मगर वो पत्थर हमे दिखा क्यों नहीं। वो तो कमरे में ही होना चाहिए न। ” ऐसा सोचते ही आन्या बिना कुछ कहे फटाफट उठकर ऊपर अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है।

“क्या हुआ आन्या ? कहा जा रही हो ?”, मौसाजी ने आवाज लगाई।

“कुछ नहीं मौसाजी , मैं बस अभी आई। “, कहकर आन्या ऊपर कमरे में पहुंच जाती है।

सुबह की धूप खिल चुकी है और कमरे में रोशनी ही रोशनी है। इसीलिए अब आन्या के डरने का तो कोई सवाल ही नहीं था। उसे बस फ़िक्र और उत्सुकता थी तो बस ये जानने की कि आखिर रात खिड़की से क्या आके टकराया था और क्यों ?
ऊपर से उसकी चिंता का विषय वो अनजान साया भी था जो उसे दो तीन दिन से बार बार महसूस हो रहा था।

आन्या पूरे कमरे को ध्यान से देखने लगती है मगर उसे कुछ नजर नहीं आता। बालकनी में भी उसे कुछ दिखाई नहीं देता। अचानक उसका ख्याल बेड के नीचे बने खाली जगह पर जाता है। वो नीचे झुक कर देखती है तो उसे अपने बेड के नीचे एक पत्थर दिखाई देता है।
वो बड़ी ही मुश्किल से उसे निकालती है।
उस पत्थर से बंधा एक पेपर उसे दिखाई देता है। वो फटाफट उस पेपर को उस पत्थर से अलग करती है और खोलकर पढ़ती है।

****

आन्या ,

मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। क्या तुम मुझसे मिलने आओगी ? अगर हाँ तो खिड़की पर लाल रंग से कोई निशान बना देना।

****

आन्या उस लेटर को पढ़कर इतना ज्यादा डर जाती है तुरंत नीचे की तरफ भागती है।
उसे समझ ही नहीं आ रहा कि ये लेटर उसे किसने और क्यों लिखा है।

तभी उसे इन्दर का ख्याल आता है और वो गुस्से से भर जाती है। उसे लगता है कि शायद ये इन्दर या उसके दोस्त की ही कोई शरारत है।
वह जल्दी से तैयार होती है और कैफे की और निकल पड़ती है।

आन्या गुस्से में भरी कैफे की ओर जा रही है। और मन ही मन बुदबुदा रही है , “हद्द होती है मजाक की , ऐसा भी कोई मजाक किसी के साथ करता है क्या भला ? आज मैं इन्दर और उसके दोस्तों को नहीं छोडूंगी।”

कैफे पहुंच कर वो इन्दर का इंतजार करने लगती है मगर वो अपनी मौसी को उस लेटर के बारे में नहीं बताती क्योकि उसे तो वो इन्दर का ही किया कोई मजाक लग रहा है।

तभी इन्दर अपने दोस्तों के साथ कैफे पर आता है और काउंटर पर आन्या को बैठा देख सीधा काउंटर की ओर चला जाता है।

“हेलो आन्या, कैसी हो ? कल बहुत देर हो गयी थी। आपकी मौसी जी नाराज तो नहीं हुई न ?”

“नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ, मौसी ने कुछ नहीं कहा। “, आन्या ने अपने गुस्से को थोड़ा दबाकर कहा।

“क्या बात है , आप काफी उखड़ी उखड़ी लग रही है ? इस बन्दे से कोई खता हो गयी क्या ?”, इन्दर ने थोड़ा मुस्कुराकर पूछा।

आन्या ने कोई जवाब नहीं दिया और काउंटर से उठकर इन्दर के दोस्त रवि के पास जाकर खड़ी हो गयी।
इन्दर को समझ नहीं आ रहा था के आखिर बात क्या है। वो भी पीछे पीछे वही जाकर खड़ा हो गया।

“रवि , तुमको बहुत शौक है न अपने दोस्त की मदद करने का ? बहुत अच्छी दोस्ती है न तुम लोगो की, तो क्या इस दोस्ती के लिए तुम कुछ भी करोगे ? वो भी जो की शायद मुझे कभी पसंद नहीं आएगा। “

“आन्या जी , आप क्या कह रही है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मैंने क्या किया है ऐसा ?”, रवि ने थोड़ा आश्चर्य के साथ पूछा।

“इतने अनजान मत बनो। कल रात मेरी कमरे की खिड़की पर तुमने ही पत्थर मारा था ना और कांच टूट गया था। है ना?”, आन्या ने थोड़ा गुस्से से बोला।
“ये कोई तरीका होता है ? तुमने एक बार भी नहीं सोचा के हम सब कितना डर जायेंगे। और वो मेरी मौसी का घर है, मेरा नहीं। ये सब करने से पहले तुम लोगो ने जरा भी नहीं सोचा ?”, आन्या काफी गुस्से में थी।

“मगर मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया। मैं ये सब क्यों करूँगा। कल आप इन्दर के साथ ही तो थी। मैं तो आपका घर भी नहीं जनता हूँ। आप चाहे तो इन्दर से ही पूछ लीजिये ?”, रवि ने अपनी सफाई ने कहा।

“रवि ये सब क्यों करेगा आन्या , और रवि क्यों , हम में से कोई भी ऐसी हरकत करने से पहले पचास बार सोचेगा। तुमको शायद कोई गलत फेहमी हुई है।
क्या हुआ कल तुम मुझसे बताओ , किसने मारा पत्थर और क्यों ?”, इन्दर ने आन्या की और देखते हुए कहा।

“मुझे नहीं पता , मुझसे तो लगा तुम लोगो ने मजाक किया है। अगर वो तुम लोग नहीं थे तो कोई राह चलता इंसान होगा जिसने ये हरकत की।”, आन्या ने कहा।

आन्या ने इन्दर और रवि की बातें सुनकर उन लोगो को उस लेटर के बारे में बताना सही नहीं समझा और वहॉँ से चली गयी।

अब तक रवि का मन काफी ख़राब हो चुका था तो पीछे पीछे वो भी उठकर वहॉँ से चला गया और उसे मनाने के लिए इन्दर और बाकि दोस्त भी वहॉँ से चले गए।

आन्या जाकर काउंटर पर बैठ गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था के अगर वो लेटर इन्दर और उसके दोस्तों ने नहीं लिखा तो फिर किसने लिखा। इसी उधेड़बुन में पूरा दिन निकल गया।
आज इन्दर और उसके दोस्तों के साथ किये अपने बर्ताव पर उसे गुस्सा और शर्मिंदगी दोनों हो रहे थे। उसने नाहक ही उन सबका मन जो दुःखा दिया था।
उसका मन कैफे पर नहीं लग रहा था।

“मौसी मैं घर जाऊ , मुझे तबियत थोड़ा ठीक नहीं लग रही। “, आन्या ने अपनी मौसी से पूछा।

“हाँ तुम जाओ। मैं थोड़ा देर से आउंगी।”, मौसी ने कहा और अपने काम में लग गयी।

इन सब उंधेड्बुन में ही वो घर वापिस जाने के लिए कैफे से निकल पड़ी।
शाम हो चुकी थी। पहाड़ो पर वैसे भी सूरज डुबते ही अँधेरा थोड़ा जल्दी हो जाता है।
घर पास ही था तो , आन्या अपने घर की और पैदल ही निकल पड़ी। हल्का हल्का अँधेरा हो चुका था।

तभी उसने किसी की पदचापों को अपने पीछे महसूस किया।
उसने देखा कोई साया उसका थोड़ी दूरी बनाकर पीछा कर रहा है।
वो काफी घबरा गयी और उसने अपनी चाल थोड़ा तेज कर दी। तो उस साये ने भी अपनी चाल तेज कर दी।
अब तो घबराहट में आन्या जैसे भागने ही लगी।

वो बार बार पीछे मुड़कर देख रही थी मगर अँधेरे और दूरी होने के कारण उसे वो ढंग से नजर ही नहीं आ रहा था।
उसे महसूस हुआ की वो साया भी अब भाग कर उसका पीछा कर रहा है।

आन्या बदहोश भागे जा रही थी। तभी उसे अपना घर दिखाई दिया।
घर ज्यादा दूर नहीं था मगर उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके कदम जमीन पर जम गए हो और वो घर तक पहुंच ही नहीं पा रही है।
तभी उसे आवाज सुनाई दी , “आन्या रुको”

मगर वो बिना पीछे मुड़े भागती रही, भागती रही और सीधा घर के अंदर घुस कर ही रुकी।
उसके शरीर में अब इतनी सी भी जान शेष नहीं रह गयी थी। और गेट के अंदर घुसते ही बेहोश होकर गिर पड़ी।

क्रमशः

वो साया आखिर कौन है जिसने आन्या को पीछे से आवाज दी और क्यों ?
वो लेटर अगर इन्दर ने नहीं लिखा तो फिर किसने लिखा ?

आगे क्या हुआ जाने के लिए हमारे साथ बने रहिये।

कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स के माध्यम से मुझ तक जरूर पहुचाइए। आपकी समीक्षा मेरे लिए बहुत अनमोल है।

-रूचि जैन

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