बेहिसाब गुस्सा दबा है, मेरे दिल में
आज तुम उसका , समुन्दर भी देख लो…
हलकी ठंडी हवा चल रही थी… मौसम भी बहुत शांत था, ऐसे में आन्या के माथे पर पसीना साफ़ साफ़ उसके दिल की घबराहट को जाहिर करने के लिए काफी था….
उतरा चेहरा, बेतरकीबी से जल्दी जल्दी में बने बाल , और इन्दर के हाव भाव देखकर आन्या इतना तो समझ ही गई थी कि कल की पूरी रात उसने बिना सोये ही गुजारी है….
कुछ देर ऐसे ही खड़ा-खड़ा इन्दर, बहुत ही बैचेनी के साथ आन्या को निहारता रहा जैसे उसका दिल उसे पूरी शिद्दत के साथ पुकार रहा हो , मग़र मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था……आँखें डबडबा रही थी और दिल में एक कौतुहल हो जन्म दे रही थी….आन्या का हाल भी इन्दर को देखकर कुछ ज्यादा ठीक नहीं था….शर्मिंदगी और पछतावे से उसकी भी आँखे डबडबा रही थी , जैसे कह रही हो कि “मुझे माफ कर दो इन्दर और जो हुआ वो भूल जाओ…आओ एक नई शुरुवात करते हैं…..”
मगर काश ये सब इतना आसान होता….एक ही रात में जैसे जिंदगी ही उथल पुथल हो गई थी दोनों की…इतना पास होकर भी ये दूरी क्यों आ गई थी….
और फिर जैसे ही उन दोनों की निगाहे टकराई, आन्या ने झेंपकर आँखे चुरा ली…..पीछे पलटी……चुपके से आँखों से लुड़कते आँसू पूछे और अपने उमड़ते जज्बातो को अपने दिल के ही किसी कोने में दबाकर चुपचाप अंदर चली आई…….
इन्दर ने भी खुद को जैसे तैसे सम्भाला और पीछे पीछे अंदर आने लगा।
“कौन था आन्या ?”, मौसी ने पूछा तो आन्या ने गेट की ओर देखते हुए इशारा किया , गेट पर खड़े इन्दर को देखकर मौसी को भी बहुत आश्चर्य हुआ , उनको भी यकीन नहीं आ रहा था कि इन्दर खुद आन्या से मिलने आया हैं , वो तो खुद अभी इन्दर को बुलाने का सोच ही रही थी और थोड़ा परेशान भी थी कि इन्दर से कैसे कहे….इतना कुछ होने के बाद पता नहीं उसका बर्ताव और मूड कैसा होगा, कही वो मना ही ना कर दे…
श्रद्धा ये सब सोच ही रही थी कि इन्दर के अभिवादन ने उसका धयान खींचा, “हेलो , मौसी क्या मैं अंदर आ सकता हूँ …”
“ह…..हाँ, क्यों नहीं …. आओ इन्दर….”, उसने इन्दर को अंदर बुलाया और बैठने का इशारा किया। इतने में अर्थ भी लौट आया और इन्दर को वहां देखकर उसका भी वैसा ही रिएक्शन था जैसा अभी थोड़ी देर पहले मौसी का था,,,,,,अब तो उसे वाकई मौसी की बातो पर यकीन सा होने लगा था , जो कल उन्होंने कही थी कि “इन्दर एक समझदार और सुलझा हुआ लड़का हैं और देखना वो सब कुछ ठीक कर देगा , उससे अच्छा जीवनसाथी आन्या के लिए कोई और हो ही नहीं सकता….”
यह याद आते ही अर्थ के चेहरे पर एक तसल्ली वाली मुस्कान लौट आई और उसने विश्वास भरी नजरो से मौसी की तरफ देखा तो मौसी ने भी मुस्कुराकर अपनी पलके झपका दी…..जैसे समझा रही हो कि थोड़ा सब्र रखो, सब ठीक होगा…..
इन्दर अभी भी सोफे पर शांत ही बैठा था , मौसी ने उसे पानी दिया तो उसने चुपचाप ग्लास लेकर एक घूँट पीया और वापिस वही रख दिया…. सभी शांत बैठे थे, इन्दर ने भी मौसी की २-४ बातो का बहुत ही सामान्य सा जवाब दिया.. मौसी इतना तो समझ ही गई थी कि इन्दर खुद ही आन्या से बात करना चाहता है इसीलिए यहाँ आया है तो उन्होंने भी अब उन दोनों को थोड़ा समय अकेले छोड़ देना ही सही समझा और बोली , “चलो अर्थ तैयार हो जाओ , कैफे के लिए देरी हो रही है….”, अर्थ मुस्कुराकर उठा और तैयार होने अंदर चला गया”, फिर वो इन्दर को देख कर मुस्कुराई और बोली इन्दर हम कैफे जा रहे है तुम लोग यहाँ आराम से बातें करो….” , यह सब उन्होंने इतना नोर्मली कहा जैसे उन्हें कुछ पता ही ना हो और इन्दर को भी उनका जाना असहज ना लगे….यह बोलकर वो भी वहां से उठी और आन्या से इन्दर को चाय बनाकर देने का बोल तैयार होने चली गयी।
आन्या भी चाय बनाने के लिए उठने लगी… तो इन्दर ने उसे रोक लिया , “नहीं , रहने दो , बिलकुल मन नहीं है”, इन्दर ने धीमे से कहा तो आन्या वापिस वही बैठ गयी…..
कुछ देर बाद मौसी और अर्थ कैफे जाने के लिए तैयार हो चुके थे मग़र इन्दर और आन्या अभी भी वैसे ही शांत बैठें हुए थे। मौसी ने शांति भंग करते हुए कहा , “इन्दर चलो भई हम लोग तो कैफे जा रहे हैं ,,,,, तुम लोग आराम से बात कर लो,,,, तुम दोनों ही बहुत समझदार हो और मुझे तुम दोनों पर पूरा यकीन हैं ,,,,,”, यह कहकर मौसी एक बार दोनों को देखकर मुस्कुराई और फिर अर्थ के साथ वहाँ से निकल गयी।
मौसी के जाने के बाद काफी देर तक वहाँ यूँ ही ख़ामोशी पसरी रही। आन्या और इन्दर दोनों ही शांत बैठे थे और यही सोच रहे थे कि पहले कौन बात शुरू करे और कैसे ?
इन्दर को इतना शांत देख आन्या को बार बार मौसी की कही बातें याद आ रही थी कि “जब वो तुमसे नाराज है तो उसकी नाराजगी भी तुमको ही दूर करनी होगी आन्या, उसे और कोई दूर नहीं कर सकता”,,,,,,,,,यह सोचकर उसका जी भर आया , उसने अपने मुँह में इकट्ठा हुए थूक को गले के नीचे सटका और अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए इन्दर की तरफ देखकर भर्राई आवाज में कहा , “म…मुझे माफ़ कर दो इन्दर ,,,,,,मैं बहुत शर्मिंदा हूँ ,,,,,”, यह कहते कहते उसकी जुबा लड़खड़ा रही थी और उसकी आँखों से आंसू छलक कर उसके गालो पर लुढ़क आये,,,,,,
यह सुनकर इन्दर एक वेग से उठा और उसका हाथ पकड़कर उसे अपने करीब खींचकर उसकी आँखों में गुस्से से झांकते हुए बोला , “किसलिए ?,,,,,,,,किस बात के लिए शर्मिदा हो तुम,,,,,,,” इन्दर का एक हाथ उनकी कमर पर था और दूसरे हाथ से उसने आन्या का हाथ पकड़ा हुआ था…., “बोलो… किस बात से शर्मिंदा हो तुम….”, इन्दर ने दुबारा, गुस्से भरी आवाज में आन्या की आँखों में देखते हुए पूछा,,,,,,,,,इन्दर की गुस्से से आँखें लाल हो चुकी थी और उनमें पानी उतर आया था ,,,,,,, उसकी आँखों में भरा गुस्सा देखकर एक पल के लिए आन्या सहम सी गयी, जब वो उससे नजरे नहीं मिला पाई तो उसने अपनी नजरे झुका ली तो इन्दर ने फिर से उसे अपने और करीब खींचा और उससे नजरे मिलाने की कोशिश करते हुए कहा , “मेरी आँखों में देखकर बात करो आन्या ,,,,,,किस बात के लिए शर्मिंदा हो तुम ,,,,,, मुझसे सच छुपाने के लिए या मुझे सच खुद ना बताने के लिए ,,,,,बोलो…”, इस बार इन्दर के हाथ की पकड़ आन्या के हाथ पर तेज थी ….आन्या को दर्द होने लगा तो उसने इन्दर की तरफ दर्द भरी नजरो से देखा, उसकी आँखे गुस्से से भभक रही थी जिनमें ना जाने कितने ही अनकहे प्रश्न उमड़ रहे थे….
इस बार इन्दर की प्रश्न भरी नजरो को देखकर आन्या जैसे अपना दर्द ही भूल गई और बिलख बिलख कर रो पड़ी , “कोई सच नहीं हैं इन्दर , मेरा विश्वास करो, मेरा मानव के साथ कोई अतीत नहीं हैं,,,,,,, कोई अतीत नहीं हैं मेरा उसके साथ,,,,,”
यह सुनकर इन्दर ने गुस्से से आन्या को थोड़ा पीछे की तरफ झटका , “झूट , बिलकुल झूट , अगर अतीत नहीं है तो कैसे जानता हैं वो तुमको,,,,,,,बोलो?,,,,,और कल,,,, कल क्या कर रही थी तुम टेरेस पर उसके साथ ,,,,,,,क्यों गयी थी वहां ? बोलो…” , इन्दर चीखा तो इन्दर को इतना ज्यादा गुस्से में देख आन्या घबराकर और तेज तेज रोने लगी….
आन्या को इस कदर रोता देख इन्दर का दिल बेचैन हो गया, वो कुछ पल के लिए शांत हुआ और फिर खुद को थोड़ा सँभालते हुए बोला , “आन्या देखो रो मत , पहले तुम चुप हो जाओ…. ” , कहकर इन्दर ने अपनी दोनों हथेलियों में आन्या के चेहरे को भर लिया और अपने सर को उसके सर से सटा दिया…. दोनों की ही आँखों से लगतार आंसू बह रहे थे और आन्या के सिसकियों की हलकी आवाजे अभी भी सुनाई दे रही थी…
“आन्या देखो,,,,,मैं सब कुछ जानना चाहता हूँ…..जो भी है , वो सब…..तुम क्यों नहीं समझ रही मेरी पीड़ा…जिस तरह मैंने तुमको कल मानव के साथ देखा और जो सुना ,,,,, उससे मैं अंदर तक हिल गया हूँ…….अजीब अजीब ख्याल आ रहे हैं मन में ,,,, मेरे दर्द की कोई सीमा नहीं,,,,उस पीड़ा को अब तुम ही दूर कर सकती हो आन्या…. बोलो कुछ तो बोलो “, इन्दर ने बहुत प्यार से आन्या को अपनी तकलीफ बताते हुए कहा और फिर उसके जवाब की प्रतीक्षा करने लगा….
मगर आन्या अभी भी चुप थी, उसकी आँखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे….कुछ पल खामोशी छाई रही फिर उसने खुद को थोड़ा संयत कर इन्दर की तरफ देखा और बोली , “यकीन मानो इन्दर मेरा कोई अतीत नहीं, मैं सिर्फ तुमको चाहती हूँ , मुझे नहीं पता मानव वहां टेरेस पर कैसे आ गया….उसने जो कुछ भी कहा वो सब….झूट हैं… “, कहकर आन्या फिर से सुबकने लगी…
दुबारा वही उत्तर पाकर इस बार इन्दर के सब्र का बांध टूट गया, उसने गुस्से में आन्या के दोनों हाथ खींचकर दीवार से सटा दिया और उसके आगे दीवार सा बनकर खड़ा हो गया ,,,,, फिर उसकी आँखों में देखते हुए गुस्से से चिल्लाया , “बार बार एक ही जवाब क्यों दे रही हो तुम…. इतना प्यार से समझाया तुमको तब भी मुझ पर जरा भी तरस नहीं आया तुमको….तुम मानव को पहले से जानती हो क्या ये सच नही……तुम पार्टी में भी मानव के साथ डांस फ्लोर पर थी और फिर उसके बाद टेरेस पर भी तुम उसके साथ…..कितना दर्द दिया हैं तुमने मुझे कल तुम सोच भी नहीं सकती,,,,,,, बार बार तुम और मानव मुझे एक साथ वैसे ही खड़े ,,,,,,,,,,छी बोलते भी शर्म आ रही हैं मुझे , तो सोचो, देखकर कितनी पीड़ा हुई होगी,,,,, क्या वो भी झूट था ,,,, बोलो “
“हाँ हाँ हाँ , वो सब झूट था , वो सब झूट था इन्दर , मुझे तो लगा वो आप हो , इसीलिए मैं तो आपसे बस अपने दिल की बात कहने टेरेस पर आई थी ,,,,,,,,सच ,,,,मुझे सच में नहीं पता था कि वहाँ आप नहीं मानव हैं , मेरा यकीन करो इन्दर ,,,,, “, कहकर आन्या जोर जोर से सिसकने लगी तो इन्दर बोला , “ठीक हैं मान लिया , यकीन भी कर लिया ,,,,, कि तुमको नहीं पता था वो मानव हैं ,,,,,मग़र क्यों गयी थी टेरेस पर ? मैंने तो तुमको नहीं कहा था वहाँ आने के लिए , ,,,,,,बोलो आन्या,,,, क्यों ?”, इन्दर ने उसके कंधे पकड़कर झकझोरते हुए कहा…..
“क्योकि मुझे वहाँ सच में किसी ने बुलाया था इन्दर , मैं खुद वहाँ नहीं गयी थी , मुझे एक वेटर ने आकर एक पर्ची दी और जब मैंने पूछा ये किसने दी तो उसने आपकी तरफ इशारा कर दिया….आपको याद भी होगा मैं आपको देखकर हाँ में मुस्कुराई भी थी…तो मुझे लगा आपने मुझे वहां मिलने के लिए बुलाया हैं ..”…..कहकर आन्या सिसकने लगी…फिर कुछ पल बाद बोली…”हमारी बात भी तो हो रही थी ना मिलने की अकेले,,,,, तो मैंने भी सोच लिया कि शायद इसीलिए आपने ही मुझे,,,,,,,, ये सब उस मानव का ही किया धरा हैं इन्दर……..इसके अलावा मुझे कुछ नहीं पता, कुछ नहीं पता,,,,,,,”, यह कहते कहते आन्या जोर जोर से सिसकने लगी….
यह सुनकर इन्दर की आँखों में नमी आ गई…. उसने आन्या के गालो को अपने हाथो में भर लिया और उसका चेहरा अपनी ओर करते हुए बोला , “मानव ने क्यों किया ये सब? क्या दुश्मनी हैं उसकी तुमसे,,,,,, तुम मुझसे क्या छुपा रही हो आन्या ,,,,,, सुनो ,,,,, सब बताओ मुझे , मैं सब जानना चाहता हूँ ,,,,एक एक बात ,,,,,, बोलो बताओगी न मुझे? “, कहकर इन्दर ने उसका चेहरा पकडे पकडे ही अपने दोनों अंगूठो से उसके आंसू पूछ दिए ,,,,,,,तो आन्या ने भी सुबकते हुए “हाँ ” में गर्दन हिलाई। यह देख इन्दर ने आन्या को अपने गले से लगा लिया, अब उसका मन थोड़ा शांत था, वो लगातार उसके सर पर हाथ फेर रहा था..फिर बोला , “बस चुप हो जाओ आन्या, मैं साथ ही हूँ तुम्हारे…..माफ़ कर दो मुझे , बहुत तकलीफ दी न मैंने तुम्हे….”, कहते हुए उसकी आँखों में पानी भर आया…..उसे मानव पर बहुत गुस्सा आ रहा था… वो तो उसे क्या समझता था और वो क्या निकला…मगर उसके मन में अभी भी यही प्रश्न था कि “क्यों? , क्यों किया उसने ऐसा….”, बहुत कुछ था जिससे वो अनजान था, अभी बहुत कुछ था जिसे उसे जानना था….
अब तक आन्या भी थोड़ा शांत हो चुकी थी…इन्दर के बोले आखरी शब्दों ने उसे बहुत ज्यादा तस्सली दी थी और इन्दर को अब थोड़ा शांत देखकर, उसकी घबराहट भी थोड़ा कम हो गई थी….
“आओ इधर बैठो ,,,,,”, कहकर इन्दर ने आन्या को वही पास ही सोफे पर बिठा दिया…
आन्या कुछ देख शांत रही और फिर वो इन्दर की तरफ देखते हुए बोली , “मुझे माफ़ कर दो इन्दर, मुझे ये सब बातें आपको बहुत पहले ही बता देनी चाहिए थी….. हाँ ये सच हैं इन्दर कि मैं मानव को जानती हूँ मग़र सिर्फ इसलिए क्योकि कभी उसका रिश्ता मेरे लिए आया था ,,,,, बस….सिर्फ इतना सा अतीत हैं मेरा उसके साथ ,,,,, और कुछ भी नहीं,,,,,,,,,जिसे उसने बढ़ा चढ़ाकर , गंदे तरीके से दिखाकर, ना जाने क्या क्या बना दिया,,,,,और आपने भी तो ना जाने क्या क्या समझ लिया….”, यह कहकर आन्या का गला भर आया और उसकी आँखें आसुंओ से भर गई…जब उससे खुद को नहीं संभाला गया तो दोनों हथेलियों को अपने चेहरे पर रखकर जोर जोर से सुबकने लगी….
और इधर इन्दर, आन्या की बात सुनकर हक्का बक्का सा रह गया। अब तो उसके लिए सब कुछ और भी ज्यादा पहेली सा बन गया था ,,,,,”रिश्ता आया था,,,, नहीं जुड़ा….बात खतम….मग़र फिर मानव ने ये सब क्यों किया ,,,, वो चाहता क्या है?….उसकी आन्या से क्या दुश्मनी हैं ,,,,,, वो क्यों चाहता था आन्या को मेरी नजरो में गिराना ,,,, वो क्यों चाहता था कि हम दोनों का रिश्ता टूट जाए ,,,,,,ओह गॉड,,,,,मैं पागल हो जाऊंगा ,,,,”,,, यह सब मन ही मन सोचते हुए उसने एक नजर आन्या को देखा जो अभी भी रोये जा रही थी ,,,,,,,उसे देखकर इन्दर अथाह वेदना से भर गया और एकाएक उसे अपने सीने से लगा लिया और फिर बोला , “आन्या, मैं तुमको ऐसे रोते नहीं देख सकता , प्लीज चुप हो जाओ , मैं समझ सकता हूँ कि तुम कितने कष्ट में हो मग़र यकीन मानो तुमको ऐसे देखकर मुझे भी उतना ही कष्ट हो रहा हैं ,,,,तुम्हारी ये बात सुनकर मेरे मन में अब तो और भी अधिक हलचल मच गयी हैं , न जाने क्या क्या प्रश्न मन में आ जा रहे हैं , मैं ये तो नहीं जानता कि पूरी बात क्या हैं मग़र जो भी हैं , मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ ,,,,,,मैं अब कभी तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगा…..सच…. बस तुम चुप हो जाओ….”, कहते कहते इन्दर की भी आँखों में भी पानी भर आया…..
कुछ पल ख़ामोशी छाई रही फिर खुद को सँभालते हुए इन्दर बोला , “देखो आन्या, तुम मुझे सब कुछ बताओ , मैं वादा करता हूँ कि हम मिलकर इस समस्या का समाधान निकालेंगे ,,,,,,तुम मुझ पर यकीन रखो बस…..”, यह कहकर इन्दर ने वहाँ रखा पानी का गिलास आन्या की तरफ बढ़ा दिया।
इन्दर की बात सुनकर आन्या थोड़ा शांत होती हैं और उससे पानी का गिलास लेकर एक ही घूँट में ही पी जाती हैं।
क्रमश :
-रूचि जैन