हमसे बचकर कहा छुपोगे , अब ये राज छुप ना पायेगा।
आज किसको सच पता चलेगा , कौन पैरो तले रुंद जायेगा।।
बाबूलाल लिफाफे से वो स्केच निकालकर इंस्पेक्टर को पकड़ा देता हैं ……और इंस्पेक्टर जब वो स्केच आन्या को दिखाता हैं तो उसकी आँखें खुली की खुली रह जाती हैं ……
“मैं इसे नहीं पहचानती,,,,,”, आन्या ने घबराकर कहा। उस स्केच को देखकर उसके चेहरे के भाव तेजी से बदल गए।
वो स्केच था ही कुछ अजीब जिसे देखकर आन्या का घबराना लाजमी था। कंधे तक बड़े बाल , लम्बी मूछे और बढ़ी हुई दाड़ी। वो मानव का स्केच नहीं था। वो तो कोई और ही था।
“ये तो मानव नहीं हैं फिर ये कौन हैं ? मगर पार्किंग में तो मुझे मानव ने बुलाया था न फिर इस लड़के ने ये स्केच क्यों बनवाया ?”, आन्या मन ही मन सोच रही थी। उसके मन में आश्चर्य और खुशी के मिले जुले भाव थे मगर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मन में सिवाए प्रश्नो के और कुछ नहीं था जिनको वो चाहकर भी किसी से नहीं पूछ सकती थी।
आन्या के न पहचानने के बाद इंपेक्टर वो स्केच मौसी, इन्दर और रवि को भी दिखता हैं , “क्या आपमें से कोई पहचानता हैं इसे?”, इंपेक्टर ने स्केच दिखाते हुए पूछा।
मगर इन्दर और बाकि भी उस स्केच वाले इंसान को नहीं पहचान पाते।
इधर इन सब के बीच इन्दर की नजरे बार बार अपने दाहिनी तरफ , घर से थोड़ा दूर, एक खाली पड़ी जगह पर जा रही थी , उधर काफी घने ऊँचे पेड़ उगे थे और आज धुंध भी काफी थी तो दूरी होने के कारण कुछ साफ़ नजर भी नहीं आ रहे थे। उसे पता नहीं क्यों बार बार ऐसा लग रहा था कि वहाँ भी कोई हैं जो इन सब चीजों पर नजर रखे हुए हैं , उसने २-३ बार पलट कर भी देखा मगर कुछ नजर नहीं आया।
“शायद मेरा वहम होगा”, उसने मन ही मन सोचा।
अब इंस्पेक्टर वापिस उस लड़के की तरफ पलटा और उसका कॉलर खींच कर अपने नजदीक लाकर, उसकी आँखों में घूरते हुए बोला, “क्या हैं बे ये ? तूने सही तो बनवाया हैं ना स्केच ? अगर कोई गोली दे रहा हैं तो अभी भी बता दे , बाद में पता लगा तो बहुत पछतायेगा तू समझा,,,,,,”
इंपेक्टर की धमकी सुनकर वो लड़का डर से काँपने लगा और रोने लगा , “नहीं साहब ये वही है , मैंने कुछ नहीं छिपाया , सब सच बता दिया , बाकि मैं और कुछ नहीं जानता , कृपया मुझे छोड़ दे ,,,,,,छोड़ दे मुझे ।।।।। , उसने खुद को छुड़ाने की कोशिश की तो इंस्पेक्टर ने १-२ चपत उसके और लगा दिए और घसीट कर उसे वहाँ से ले जाने लगा ।
“इन्दर जी , हम छानबीन करते हैं इस स्केच के बारे में , कौन है ये ?”, जाते जाते इंस्पेक्टर ने इन्दर से कहा और फिर वहां से चला गया।
इन्दर ने पलट कर आन्या को देखा जो अभी भी दरवाजे पर गुमसुम सी खड़ी इंस्पेक्टर और उस लड़के को जाते हुए देख रही थी।
“तुम वाकई नहीं जानती ये कौन है ?”, इन्दर के सवाल ने आन्या का ध्यान तोड़ा ।
एक पल को आन्या ने इन्दर को देखा और फिर गहरी साँस लेते हुए बोली , “हाँ इन्दर , नहीं जानती ,,,,,,,,,, मैंने सच में उसे पहले कभी नहीं देखा,,,,,,,,,,,,,,,मगर आप मुझसे ऐसे क्यों पूछ रहे हो ? क्या विश्वास नहीं मुझपर ?”, आन्या ने गुस्से और बेरुखी से इन्दर को देखा और मुड़कर अंदर जाने लगी तो इन्दर ने भागकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे रोकते हुए उसके सामने जाकर खड़ा हो गया।
“तुम मुझे गलत समझ रही हो आन्या , मुझे तुम पर खुद से ज्यादा विश्वास हैं मगर पता नहीं क्यों मेरा दिल कह रहा हैं कि तुम किसी परेशानी में हो और कुछ तो हैं जो तुमको सता रहा हैं और वो मुझे नहीं पता। मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ बस और कुछ नहीं। “, इन्दर ने आन्या के चेहरे को अपने हाथो में भरकर उससे नजरे मिलाते हुए कहा तो आन्या ने एक बार मौसी की तरफ तिरछी नजर कर के देखा और फिर ख़ामोशी से अपनी नजरें झुका ली।
मौसी के भी कुछ कहते नहीं बन रहा था, वो चाहती थी कि आन्या और इन्दर अपने बीच की इस परेशानी को खुद ही हल करे , उनको उन दोनों के बीच बोलना सही नहीं लग रहा था। उन्होंने रवि से अंदर आने को कहा और फिर रवि के साथ अंदर चली गयी। वो शायद इन्दर और आन्या को अकेले बात करने के कुछ पल देना चाहती थी।
आन्या की झुकी नजरे इन्दर से यही बयान कर रही थी कि जो वो समझ रहा हैं वो वाकई सच हैं , और कुछ तो हैं जो आन्या नहीं बताना चाहती, मगर क्या ?
उसने अनायास ही आन्या को अपनी बाहो में भर लिया और रुंधे स्वर में बोला , “बोलो ना आन्या, प्लीज कुछ तो बोलो , मैं तुमको इतना परेशान नहीं देख सकता। मैं वाकई तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ , बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे , क्या तुमको मुझ पर भरोसा नहीं ?”
आन्या ने जवाब में अपने दोनों हाथ उसकी कमर पर लपेट लिये और उसकी आँखें डबडबा गयी , वो खुद को इन्दर के आगे कमजोर महसूस कर रही थी , उसे लग रहा था कि शायद वो ज्यादा समय तक उससे सब कुछ नहीं छुपा पायेगी। उसका मन हुआ वो सब कुछ अभी इन्दर को बता दे मगर इन्दर को खोने का डर , इतना समझाने के बाद भी उस पर हावी था। गले लगे लगे हो उसने धीरे से अपने आंसू पूछे और इन्दर से अलग होते हुए बोली , “मुझे आप पर पूरा भरोसा हैं इन्दर , मगर सच मानिये ऐसा कुछ नहीं जो मैंने नहीं बताया हो। ” , और ये बोलकर वो भागकर घर के अंदर चली गयी।
इन्दर भी उसके पीछे पीछे अंदर जाने लगा तो पीछे कुछ खडका सा हुआ जैसे सूखे पत्तो पर किसी के चलने की आवाज हो , उसे दुबारा वही एहसास हुआ कि जैसे कोई तो हैं उधर , और वो अनायास ही उस ओर बढ़ने लगा।
तभी किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रखा तो इन्दर घबराकर पलटा , “कौन हैं ?”
“अरे ! मैं हूँ रवि ओर कौन होता , चल, अंदर मौसी बुला रही हैं। “, रवि ने अपने दाँत दिखाते हुए , उसकी बाह पकड़कर घर की ओर ले जाते हुए कहा तो इन्दर वापिस रवि के साथ घर की तरफ बढ़ गया।
उसने एक बार फिर पीछे मुड़कर चारो ओर देखा, मगर आस पास घने पेड़ और मौसम में धुंध के कारण उसे कुछ दिखाई नहीं दिया और फिर वो भी अंदर चला गया।
इन्दर के अंदर जाते ही एक साया तेजी से पेड़ो के पीछे से होता हुआ , लगभग भागता हुआ वहाँ से धुंध में गायब हो गया।
“आओ इन्दर बैठो चाय तैयार हैं , आन्या लो बेटा , इन्दर को चाय दो और तुम भी ले लो। “, इन्दर को आया देख , मौसी ने आन्या को आवाज लगाकर अपने पास बुलाते हुए कहा और फिर आन्या को देखकर चुपके से इशारे से पूछा , “बताया ?”, तो आन्या ने भी इशारे में सर हिला कर कहा “नहीं”, तो मौसी अपना मन मसोस कर रह गयी।
आन्या चाय लेकर इन्दर को पकड़ा देती हैं और खुद भी पास बैठकर चाय पीने लगती हैं। इन्दर चाय पीते पीते अभी भी बाहर महसूस हुए साये के बारे में ही सोच रहा था।
“कोई तो था वहां , मगर कौन ? किसको फायदा हैं हम पर नजर रखकर ? शायद वो किलर या फिर वो जो गुमनाम हैं और जिसे शायद आन्या भी छुपा रही हैं ” , इन्दर ने मन ही मन सोचा और फिर आन्या को देखने लगा। आन्या भी शायद ये महसूस कर रही थी कि इन्दर उसे लगातार देख रहा है मगर फिर भी वो चुपचाप अपनी चाय ही पीती रही जैसे उसे कुछ आभास ही न हो।
हलाकि वो थोड़ा असहज हो गयी थी और इन्दर की नजरो से बचना चाह रही थी , उसे डर था कि इन्दर फिर से उससे कुछ पूछ ना ले।
तभी अचानक इन्दर कुछ सोचते हुए मौसी से बोला , “मौसी क्या मैं आन्या को थोड़ी देर के लिए बाहर ले जा सकता हूँ ? बात भी हो जाएगी और उसे अच्छा भी लगेगा। “, ये सुनकर आन्या को तो जैसे साँप सूंघ गया हो।
मगर मौसी २ दिन पहले हुई घटना को याद कर डर के कारण इन्दर को मना कर देती हैं और बोलती हैं कि, ” तुम आन्या से यहाँ घर पर या कैफे पर आकर कभी भी मिल सकते हो। मगर अभी , जबकि गोली चलाने वाला पकड़ा भी नहीं गया है तो आन्या का अभी बाहर जाना ठीक नहीं। “
यह सुनकर आन्या की थोड़ा जान में जान आयी और फिर वो थोड़ा सहज हो गयी।
इन्दर भी मौसी की बात सुनकर हामी भरता हैं और फिर से अपनी चाय पीने लगता हैं। थोड़ी देर ऐसे ही शांति बनी रहती हैं। फिर मौसी कुछ सोचकर शांति भंग करती हुई बोली।
“२ दिन बाद आन्या का भाई अर्थ आ रहा हैं आन्या को वापिस ले जाने , मैं जितना इसको रोक सकती थी मैंने कोशिश की मगर अब आन्या की माँ और नहीं मान रही। और वैसे भी इन परिस्थियों में उसका जाना भी रही रहेगा कम से कम वो वहाँ घर पर अपने माँ बाउजी के पास सुरक्षित तो रहेगी।”, मौसी ने इन्दर को बताया तो सुनकर इन्दर का मुँह उतर गया।
“मगर २ दिन बाद तो इन्दर का भी जन्मदिन हैं तो क्या आन्या उसके साथ नहीं होगी उस दिन ?”, इन्दर का चेहरा उतरा देख रवि मौसी से बोला।
“मौसी, आप प्लीज कुछ और दिन आन्या और अर्थ को कैसे भी रोक लीजिये ना”, रवि ने मौसी की ख़ुशामद करते हुए कहा तो मौसी ने इन्दर की तरफ देखा जो खामोशी से मौसी को ही देख रहा था मगर उसकी आँखें भी उसके दिल की बात बोल रही थी।
“अरे वाह ! तुम्हारा जन्मदिन हैं इन्दर , ये तो मुझे नहीं पता था , फिर तो आन्या को तुम्हारे साथ उस दिन जरूर होना चाहिए। ,,,,,,,ठीक हैं मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करुँगी।”, मौसी ने इन्दर को आश्वासन दिया।
“इन्दर , अब मुझे कैफे के लिए निकलना हैं , आन्या भी मेरे साथ ही जाएगी , क्या तुम लोग भी आना चाहोगे ?”, मौसी ने वहाँ से उठते हुए कहा तो इन्दर ने भी साथ जाने की हामी भरी , “जी मौसी”
“इन्दर तू आन्या के साथ कैफे जा, मैं थोड़ी देर में तुझे वही मिलूंगा , कुछ काम हैं मुझे वो करके आता हूँ। “, रवि ने इन्दर से कहा और वहाँ से चला गया। और फिर वो सब भी कैफे के लिए निकल गए।
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आर्य फार्महाउस –
धीरज हड़बड़ाया हुआ फार्महाउस में प्रवेश करता हैं , “मानव—– , मानव—— , कहाँ हो ?”
मानव अपने रूम से निकल कर लॉबी में आते हुए ,”हम्म , बोलो , ये रहा मैं , तू क्यों इतना हड़बड़ाया हुआ है ? और आ कहाँ से रहा हैं ? सुबह से गायब हैं तू “, मानव ने धीरज को देखकर उल्टा सवाल दाग दिया।
“वो सब छोड़ , बस तू मुझे ये बता तुझे इन्दर मिला कहाँ से?”, धीरज ने हड़बड़ा कर थोड़ा चिंतित होते हुए पूछा।
“मिला कहाँ से , मतलब ? बताया तो था , सड़क पर मिला था , एक्सीडेंट हुआ था उसका तो मैं उसे यहाँ ले आया था , बस”, मानव ने मुस्कुराते हुए कहा।
“अभी जो मैं तुझे बताने वाला हूँ ना उसे सुनकर तेरी ये सारी मुस्कराहट छू होने वाली हैं —“, धीरज ने अपने दोनों हाथो को बांधते हुए टेबल से सहारा ले कर खड़े होते हुए कहा।
“ऐसा क्या बताने वाला हैं तू , भूत देख लिया क्या ?”, मानव ने धीरज पर हसते हुए कहा तो धीरज उसे घूरते हुए बोला , “इससे भी कुछ ज्यादा देख लिया आज मैंने —-“
“अब पहेलियाँ मत बुझा जल्दी बोल “, मानव ने पास पड़ी चेयर पर बैठते हुए कहा।
“आन्या किसे प्यार करती हैं ये जानना चाहता था ना तू ? तो सुन, वो कोई और नहीं इन्दर हैं , वही इन्दर , जिसे तूने बचाया था और जो कल भी तेरे साथ था। “, धीरज ने जैसे ही ये सब मानव से कहा मानव आश्चर्य से अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ , “क्या—या—या” और धीरज के करीब पहुंच कर गुस्से से उसकी आँखों में घूरते हुए बोला , “तुझे कैसे पता लगा , तुझे कैसे पता ये वही इन्दर हैं, बोल “
“अभी आन्या के घर के पास से ही आ रहा हूँ मैं , वहाँ देखा मैंने इन्दर को उस इंस्पेक्टर के साथ , मुझे पता लगा ना कि पुलिस केस हो गया है तो मैं नजर रखने गया था वहां कि देखु तो जरा क्या चल रहा हैं , मगर वहाँ इन्दर और रवि भी दिख गए मुझे , पहले तो मैं समझ ही नहीं पाया कि ये यहाँ कर क्या रहा हैं , मगर जब इंस्पेक्टर के जाने के बाद आन्या और इन्दर गले लगे तो मैं समझ गया कि ——“, धीरज अपनी बात अभी पूरी भी नहीं कर पाया था कि मानव ने एक वेग से (जोर से ) उस कुर्सी पर लात मारी जिसपर थोड़ी देर पहले मानव बैठा हुआ था और कुर्सी जोर से उछल कर लॉबी की दीवार से जा टकराई।
(दरअसल जिस साये का एहसास इन्दर ने आन्या के घर के पास किया था वो कोई और नहीं धीरज ही था , जिसने वहाँ इन्दर को इंस्पेक्टर के साथ देख कर पहचान लिया था। )
“कुर्सी पर क्यों गुस्सा उतार रहा हैं”, धीरज ने मानव को देखते हुए कहा , जो लाल सुर्ख आँखों से अभी भी दूर पड़ी कुर्सी को ही देख रहा था, उसका जबड़ा और मुट्ठिया गुस्से के कारण भिंची हुई थी।
क्रमशः
रूचि जैन
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