तेरे हुस्न की चर्चा , जब कभी छिड़ती है महफ़िल में,
मेरी हर नज्म, तेरे आने का इस्तकबाल करती है
बना हूँ क्यों मैं आशिक क्यों दीवाना ,क्यों प्यार हुआ हमको
क्यों तमन्ना हर पहर, तेरा ही इन्तजार करती हैं
छुड़ा कर साथ हमसे जब , सब तेरी देहलीज पर आ बैठे
उठा दे जब भी तू पलके , ये निगाहे कमाल करती है
हर साकी की नज़रे तुझपे है , तड़पता दिल हैं क्यों मेरा,
मुक्कमल इश्क मेरा हो , वो दुआ ये हजार करती है
सजा हूँ मैं जैसे चाँद बादल से , सभी तारे है बाराती
तू पिघली चांदनी सी है , दिल ए बेहाल करती हैं
तेरे हुस्न की चर्चा , जब कभी छिड़ती है महफ़िल में,
मेरी हर नज्म, तेरे आने का इस्तकबाल करती है
– रूचि जैन
# गजल
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