उजले हुए चमन में , बिजली से चमके घन की,
ठंडी चली पवन की, मीठी सी एक चुभन
करती है ढ़ेर बातें, जग- जग के सारी रातें ,
ना तू रुला किसी को, जो मन में हो किरण …
क्यों सोचता है इतना, कि विश्वास टूट जाये,
दुनिया से दूर हो मत, कहीं खुद से ना छूट जाए
इंसानियत की तर्ज पर, समझा तू अपना मन,
करता भी रह जतन तू, जो मन में हो किरण…
बेकार के प्रश्नो को, क्यों छेड़ता है तू,
पैसों के वास्ते ही रिश्तो को, तोड़ता है क्यों?
हर एक की जुबा पर, बस एक ही है शब्द ‘धन ‘,
खुद भी तो कमा सकता है तू, जो मन हो किरण…
खेतो में काम करते, किसानों से पूछ लो,
इस झोपड़ी में रहकर , तुम खुश भी कैसे हो?
जितना मिला है हमको, उससे संतोष में है मन,
देंगे जवाब ये ही, क्योंकि उनमें है एक किरण …
विद्यार्थियों के मन में , सत्यता का भाव हो,
पाए वो अपनी मंजिलें, जो कोशिशें भी साथ हो
हम हारकर ना बैठें, ये मन में हो लगन,
वो पा सकेंगे लक्ष्य को, जो मन में किरण…
मेहनत बिना तो पेड़ भी, एक फल नहीं देता,
बिन कोशिशो के, साथ कभी धन नहीं रहता
क्यों भूलते हो इनको, ये देते है ये ही मंत्र,
कर सकते हो तुम बहुत कुछ, जो मन में हो किरण…
ये कुछ लाइन्स विद्यार्थियों के लिए, जो अपने गुरु और मित्रों से बिछुड़ रहे है…
गुरु ने हमें दिया जो, वो न भूल पाएंगे,
विद्या के इस रतन को, अब हम बढ़ाएंगे
सेवा करे क्या इनकी, मन में है एक उमंग,
भूले ना ये भी हमको, ये ही कहता है मन…
पाओगे अपनी मंजिलें, जानें के बाद तुम,
हर किसी के मन में , होगा थोड़ा सा गम
छूटते साथी से अपने, इतना ही कहना तुम,
आयेंगे काम मुश्किलों में भी, बस याद करना तुम…
जाने से पहले मन से, ये ही दुआ करुँगी,
हो जाये हर किसी के, मन की भी आस पूरी
अलविदा कहेंगे मुँह से, पर सदा मन से साथ है,
उन्नति करो सदा तुम, ये ही मन में आस है…
ये ही मन में आस है…
-रूचि जैन
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