कशमकश – मेरे दिल की उलझने
जंगलो में घूमता फिर रहा था रात दिन
रास्ता मुझको कोई समझ आया नहीं
गुम था मैं इन दरख्तों की घानी आबादी में कही
होश काफिर को अब तलक आया नहीं
दिख पड़े दो रस्ते उलझे सुलझे से हुए
मैं किसी अजीब असमंजस में जकड़ा हुआ
कौन सा रास्ता चुनु घर लौटने के लिए
मैं अब तलक इसी कशमकश में उलझा सा था
चल दिया बस यूँ ही एक पथ पर
ख्वाईशो को दिल में ले
जानता हूँ नहीं, रास्ता कौन सा सही
बस एक विश्वास है और पहुंचने की आस है
अब जाके मैं मंजिलो की कोशिशों में था
-रूचि जैन
Read my other Hindi poems : “आशा का दीप“, “तेरी बेपनाह मोहब्बत का क्या हिसाब लिखूँ”
Read my English poems : “Beautiful golden heart“, “Mother Earth“
Visit my facebook page
Read my stories on pratilipi.com