कौन कहता है , हम आसमां छू नहीं सकते
लम्बा है सफर , अभी पूरी , उड़ान बाकि है
फ़ैलने दो पंख खुली हवा में ,
अभी तो पूरा आसमान बाकि है…
पंख नहीं तो क्या , चाहते है मगर
जिंदगी जीने का , हौसला है मगर
गिर के संभालना , और फिर आगे बढ़ना
अपराजिता के जैसे , मुश्किलों से लड़ना
थोड़ा थमना
थोड़ा थमना,और सबको थामना
खुद आगे बढ़कर, परिवार को संभालना
अपने लिए भी अब खुल कर जी लू थोड़ा
कुछ सपनों को जीना अभी बाकि है…
कौन कहता है , हम आसमां छू नहीं सकते
लम्बा है सफर , अभी पूरी , उड़ान बाकि है …
मैं हूँ ममता की धनी , कई रूप में जीती हूँ
कही शांत हूँ , कही हूँ काली, तो कही मैं सहती हूँ
आँसू छुपा लेती हूँ,
मुस्कान फैला देती हूँ,
नव जीव अंकुरण के लिए,
खुद की जान तक गवां देती हूँ,
थोड़ी चाहत
थोड़ी चाहत,और थोड़ा सा दुलार
बस मांगती हूँ बदले में,अपनों का प्यार
सर उठा के,अब मैं भी जी लू थोड़ा
सर्व सम्मान मिलना अभी बाकि है…
कौन कहता है , हम आसमां छू नहीं सकते
लम्बा है सफर , अभी पूरी , उड़ान बाकि है …
-रूचि जैन
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आप बहुत अच्छा लिखती हैं ?
thank you ji 🙂