उस आईने में, जब भी देखूं , अक्स तेरा
मेरे दिल की बेचैनी झलक जाती है
यू तो रखते है, छुपा के, गम दिल में
पर ये नमी, आँखों से छलक जाती है
कुछ तो गहरे, हैं निशान, इस दिल पे
मेरे अतीत की, जैसे निशानी है कोई
तुम जो मानो तो, सच है दिल का
तुम ना मानो तो , कहानी है कोई
सुना था जख्म , इतना, नहीं देते अपने
तुम तो कर गुजरे, क्या गिला, दिल ये करे
अब तो बहते है , ये आंसू , इस दिल से
बन ना जाये तूफा, अब ये , रब्बा ख़ैर करे
उस आईने में, जब भी देखूं , अक्स तेरा
मेरे दिल की बेचैनी झलक जाती है
यू तो रखते है, छुपा के, गम दिल में
पर ये नमी, आँखों से छलक जाती है
– रूचि जैन
# गजल # आइना-ए-गजल