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आशा का दीप

कोरोना के इस टाइम में, दिल की बैचैनी को समझाती मेरी ये कविता- आशा का दीप

मेरी कलम से

कठिन समय है, चारो और, फैला घना अँधियारा है
इस अँधियारे में आशा का तू, कोई दीप जला लेना
दूरी रखना तू , पर साथ तू रहना
निराशा को तू न आने देना
मन है व्याकुल, डर ह्रदय में , बस यूँ ही तरते जाना है
इस अँधियारे में आशा का तू, कोई दीप जला लेना

दिल में लाखों प्रश्न भरे है, उत्तर कोई मिला नहीं
मैंने ही क्यों खोया अपनों को, जख्म ये कैसा जो भरा नहीं
हिम्मत रखना तू , हिम्मत देना
अपनों को तू थामे रखना
नम है आँखें, दर्द ह्रदय में, बस यूँ ही साथ निभाना है
इस अँधियारे में आशा का तू, कोई दीप जला लेना

कब तक यूँ ही बंद रहूँगा, कब अपनों से मैं मिल पाउँगा
डर डर कर कब तक जीउँगा , ना जाने कब मर जाउँगा
मत सोच तू ऐसा, उम्मीद तू रखना
धीरज धर बस बढ़ते जाना
विचलित हैं आँखें , प्रश्न ह्रदय में, बस यूँ ही समय बिताना है
इस अँधियारे में आशा का तू, कोई दीप जला लेना

-रूचि जैन

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2 Responses

  1. Parul Jain says:

    Beautifully written 👌

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