अन्तर्द्वन्द्व –
“कल्याणी,अरे ओ कल्याणी “,चिल्लाते हुए माया अपने कमरे से निकली।
बाल बिखरे हुए थे, चेहरा तमतमाया हुआ जैसे गुस्से से अभी फट पड़ेगा|
माया शायद कुछ ढूंढ रही थी, जो उसको नहीं मिल रहा था| वो चिल्लाते हुए वापिस कमरे में घुस गई|
तभी कल्याणी भागती हुई कमरे में घुसी, “जी दीदी”, वो काफी घबराई हुई थी।
मैला सा सूट, चेहरे पर पसीना, बाल बेतरीके से बंधे हुए, हड़बड़ाहट में गीले हाथ भी पूछना भूल गई थी।
माया गुस्से में थी ये पहली बार नहीं हुआ था,पर कल्याणी के मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे|
माया का कल्याणी के साथ बुरा बर्ताव –
हाथो से टपकते पानी को देख कर माया और ज्यादा गुस्से में बोली, “ये क्या तरीका है मेरे कमरे में आने का , सारा कमरा गन्दा कर दिया।“
“कहाँ थी तुम कब से बुला रही हूँ, अब सुनाई देना भी बंद हो गया है क्या? “ , माया ने अपनी भोये चढ़ा के पूछा।
“नहीं दीदी, मैं तो बर्तन कर रही थी, पानी के नल की आवाज से सुनाई नहीं पड़ा“ ,कल्याणी एक साँस में बोलती चली गई
“अच्छा अब बहस भी करोगी। ” माया फिर से चिल्लाई।
ऐसा लग रहा था जैसे बरसो का गुस्सा उतरने का आज मौका मिल गया हो।
“सारे के सारे नौकर एक जैसे है, काम के न काज के दुश्मन अनाज के “, माया ने फिर टोंट कसी।
इस बार कल्याणी शांत थी। कमरे में कुछ पल सन्नाटा सा छाया रहा।
कल्याणी ने निगाहें इधर-उधर दौड़ाई , तो उसे समझते देर न लगी की माया किसी पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रही थी।
पलंग पर एक अच्छी पोशाक रखी थी और पास ही जमीन पर मैचिंग के ऊंचे हील के सुन्दर से सैंडल रखे थे।
अब तक माया भी थोड़ा शांत हो चुकी थी।
“मेरे कान का एक बूंदा नहीं मिल रहा , जरा ढूंढो तो सही। ” माया ने कल्याणी की ओर देख कर कहा।
कल्याणी ने फिर से निगाहें इधर उधर दौड़ाई।
“अरे ! ये रहा, मिल गया दीदी”, कल्याणी ने पोशाक के करीब से एक बूंदा उठा के माया को थमा दिया।
“ओह गॉड! , ये यहाँ था। मैंने तो जाने कहा कहा नहीं ढूढ़ा । ” माया ने मुँह बनाते हुए कहा।
“मैं जाऊ दीदी”, कल्याणी ने पूछा।
“हाँ जाओ।” माया के कहते ही कल्याणी तो जैसे वहाँ से एक पल में गायब ही हो गयी।
वो माया को फिर कुछ बोलने का मौका नहीं देना चाहती थी।
अतीत के पन्ने –
“जल्दी जल्दी अपना काम निपटा लेती हूँ। “, बड़बड़ाते हुए कल्याणी रसोईघर में घुसी और दुबारा बर्तन करने में लग गयी।
भोला चेहरा, चेहरे पर उदासी , दिल में अकेलापन, कुछ तो था कल्याणी के मन में जो उसे ना सही से जीने दे रहा था और ना मरने दे रहा था।
उसके मन में फिर वही अन्तर्द्वन्द्व चलने लगा।
मगर कौन सा अन्तर्द्वन्द्व ? आखिर वो अन्तर्द्वन्द्व क्या था ?
काम करते करते वो कब अतीत में चली गई उसे पता भी नहीं चला।
जैसे कल की ही तो बात थी। जब वो और माया एक साथ बगीचे में खेला करती थी।
दोनों हमउम्र थी बस फर्क था तो अमीरी और गरीबी का।
माया शहर के एक बड़े व्यापारी की बेटी थी और कल्याणी की माँ उनके घर काम किया करती थी।
बचपन में ही कल्याणी के सर से पिता का साया उठ गया था।
वो अपनी माँ के साथ कभी कभी काम पर आ जाया करती थी और वही से माया और कल्याणी की दोस्ती शुरू हुयी।
साथ खेलना, बातें करना और साथ बैठ कहानियाँ पढ़ना।
माया पहले ऐसी तो नहीं थी फिर इतना गुस्सा कहाँ से आया और इतना सब कुछ कैसे बदल गया?
माया के हाथ में लोहे का जूना लगा और उसका ध्यान अतीत से हटकर हाथ से बहते खून पर गया।
“आह! ये यादें भी कितनी बेमानी होती है ” कहकर उसने अपना हाथ मुँह में दे लिया।
खून बहना रुक गया था और कल्याणी फिर काम में लग गयी।
“क्या सब कुछ फिर पहले जैसा कभी नहीं हो पायेगा?” एक अन्तर्द्वन्द्व हर समय उसके मन में चलता रहता था।
कल्याणी फिर से अतीत में पहुंच गयी।
वो भयानक रात –
अब दोनों सहेलियाँ बड़ी हो चुकी थी और नव यौवन में कदम रख चुकी थी।
दोनों ही एक दूसरे की परछाई जैसी थी और सुन्दर इतनी की जो भी देखे देखता रह जाये।
कल्याणी की माँ अभी भी माया के घर काम पर जाया करती थी और साथ ही कल्याणी भी।
कल्याणी की सुंदरता उसकी एक अलग ही पहचान थी ना जाने कितने लोगो को उसकी सुंदरता ने सोने भी नहीं दिया होगा।
पर उसकी ये सुंदरता ही एक दिन उसके लिए अभिशाप बन जाएगी और दोनों सहेलियों के बीच दरार का कारण ये तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
वो भयानक रात याद आतें ही उसके पसीने छूटने लगे।
कैसे बताये वो अपनी प्यारी सहेली को कि उसका पिता कितना दरिंदा इंसान था जिसने अपनी बेटी की ही प्यारी सहेली की आबरू पर हाथ डाला था।
वो रात वाकई बहुत दर्दनाक थी। तेज बारिश थी और कोई सवारी मिल नहीं रही थी।
तो माया की माता जी के कहने पर कल्याणी और उसकी माँ उस रात वही रुक गए थे।
रसोईघर नीचे के फ्लोर पर था और बाकि के कमरे ऊपर के फ्लोर पर थे।
इसीलिए आता जाता वहाँ कोई आसानी से दिखता भी नहीं था।
दोनों ने वही रसोईघर के पास जमीन पर कपड़ा बिछाया और लेट गयी।
और कब कल्याणी की आँख लगी उसे पता ही नहीं चला।
रात के करीब २ बज रहे थे कि अचानक कल्याणी ने अपनी छाती के ऊपर किसी का हाथ महसूस किया।
वो घबराकर उठ बैठी।
चारो और अँधेरा था। पास ही खिड़की से चाँद की हल्की हल्की रोशनी आ रही थी। बारिश भी शायद रुक चुकी थी।
हल्की हल्की रौशनी में उसने अपने करीब किसी को बैठा देखा।
“कौन है ?”
“आप?”, अपने नजदीक माया के पिता को देखकर वह काफी घबरा गई थी।
कल्याणी की माँ का अपनी बेटी को बचाना –
माया के पिता का हाथ उसकी छाती पर था ये सोच कर ही उसे यकींन नहीं आ रहा था।
वो सोच भी नहीं सकती थी के माया के पिता कि नजर उस पर न जाने कब से थी।
और आज जैसे उनको मौका मिल गया था।
“तुम बहुत खूबसूरत हो, आओ मेरे साथ मेरे कमरे में चलो, मैं हर रात तुमको इतने पैसो में तोल दूंगा कि तुम सोच भी नहीं सकती। “, सेठ ने कल्याणी से धीरे से कहा।
“आप इतने घटिया इंसान हो सकते हो ये मैं सोच भी नहीं सकती थी, मैं गरीब जरूर हूँ पर ऐसी वैसी लड़की नहीं हूँ।”, कल्याणी गुस्से से बोली।
वो जैसे ही चिल्लाने को हुई उसका मुँह हाथो से दबा दिया गया।
मगर उसकी आवाज उसकी माँ के कानो तक पहुंच ही गई जो नजदीक ही सोई थी।
कल्याणी की माँ को सब कुछ समझते देर नहीं लगी।
उसने हाथ जोड़कर सेठ से अपनी बेटी को छोड़ने को कहा मगर सेठ पर तो जैसे हवस का भूत सवार था।
“तुम दोनों में से कोई भी अगर चिल्लाया तो मैं तुम दोनों को चोरी के इल्जाम में अंदर करवा दूंगा।
इसीलिए ,जो मैं चाहता हूँ, तुम दोनों मेरी बात मानों। ” , सेठ ने बिना किसी डर के धमकी दी।
दोनों ही मानो खुद को लाचार महसूस कर रही थी। आस पास कोई दिख भी नहीं रहा था।
ऐसा लग रहा था जैसे सेठ ने सब नौकरो को छुट्टी दे दी हो।
ऐसा नीच काम वो सबके होते कर भी तो नहीं सकता था।
तभी एक हरकत हुई। सेठ ने कल्याणी का मुँह दबाया और उसे खींच कर कमरे की तरफ ले जाने लगा।
कल्याणी कि माँ उसे अपनी और खींचने कि पूरी कोशिश कर रही थी पर सेठ कि ताकत के आगे वो नाकाम रही।
सेठ की मौत –
सब कुछ इतना जल्दी और अचानक हुआ था कि किसी को कुछ समझ ही नहीं आया था।
सेठ ने एक धक्का मारा और कल्याणी कि माँ दूर जा गिरी।
अपनी बेटी को बचाने के लिए उस वक़्त कल्याणी की माँ को कुछ नहीं सूझा और उसने पास पड़ा छुरा उठा कर सेठ के सीने में उतार दिया।
एक चीख के साथ सेठ वही ढेर हो गया।
चीख सुनकर घर के सभी लोग वहाँ इकट्ठा हो गए।
नीचे माया के पिता की लाश पड़ी थी और कल्याणी की माँ के हाथ में छुरा था।
कल्याणी की माँ किसी को भी असली बात बताकर अपनी बेटी को बदनाम नहीं करना चाहती थी और क्योकि वो जानती थी की उसकी बात पर कोई यकीन नहीं करेगा।
इसीलिए उसने चोरी करने की झूठी कहानी बना डाली और पकड़े जाने पर सेठ की हत्या कबूल कर ली।
पुलिस आई और कल्याणी की माँ को लेके चली गई।
जाते जाते उसने कल्याणी से कभी भी किसी से कुछ भी सच ना बताने का वादा भी ले लिया और सेठानी से मिन्नतें करके कल्याणी को उसकी जगह काम देने के लिए भी मनवा लिया था।
सेठानी भी पता नहीं क्यों आसानी से मान गयी थी और एक प्रश्न भरी नजरो से कल्याणी कि माँ को देखे जा रही थी पर कल्याणी कि माँ अपनी ही बात पर अटल थी।
अब कल्याणी एक दम अकेली रह गई थी।
अब ना तो उसके पास उसकी माँ थी और ना उसकी वो प्यारी सहेली।
माया और कल्याणी का अलगाव –
माया बहुत दुःख और गुस्से में थी।
उसके सर से उसके पिता का हाथ जो उठ गया था जिनको वह बहुत प्यार करती थी।
अब तो उसके मन में सिवा गुस्से और चिड़चिड़ाहट के कुछ भी शेष नहीं रह गया था।
उसको तो वही सब सच लग रहा था जो कल्याणी की माँ सबको बता कर गई थी।
उसके लिए तो कल्याणी अब एक चोर और ख़ूनी की बेटी बन गई थी।
अचानक उसका हाथ गरम कढ़ाई पर लगा और कल्याणी जैसे सोते हुए से जाग गयी हो।
उसे पता था की अब ना तो उसकी माँ उसके पास लौट के आएगी और ना ही उसकी वो प्यारी सखी, जो कही खो गई थी।
सारा काम फटाफट निपटा कर वह थोड़ा आराम करने के लिए चली गयी।
समय धीरे धीरे बीत रहा था और कल्याणी की बैचनी बढ़ती जा रही थी।
बिना किसी गलती के सजा भुगतना उसको गलत महसूस हो रहा था |
उसके मन में बार बार वही अन्तर्द्वन्द्व चलने लगता था की अब वो क्या करे , क्या सब कुछ सच सच बता दे या फिर चुप रह जाये।
वो जानती थी कि उसकी माँ ने सेठ का क़त्ल जरूर किया है पर उसकी माँ चोर नहीं है और न ही वो चोर कि बेटी है।
वो कैसे सबको बताये और समझाए कि उस रात उसके साथ कितना गलत होने वाला था।
जब जब भी वो ये सब सोचती उसकी आँखें आसुँओ से भर जाती थी।
कल्याणी का माया की माँ को सारा वृतांत सुनना –
हर दिन वो यही सोच कर सोती थी कि कल मैं माया कि माँ को सबकुछ बता दूंगी पर अगले दिन फिर मन मसोस के रह जाती थी।
माया कि माँ एक अच्छी और भली औरत थी। पर वो अधिकतर बीमार ही रहती थी।
पता नहीं ऐसा क्या था जो उनको अंदर ही अंदर खाये जा रहा था।
अपने पिता के मरने के बाद माया भी अपने में खोई खोई रहने लगी थी इसीलिए सेठानी और ज्यादा अकेली हो गई थी।
एक दिन जब उससे रहा नहीं गया तो वह माया की माँ के पास पहुंच गई जो की काफी बीमार थी।
कल्याणी को वहाँ देख सेठानी ने उससे वहाँ आने का कारण पूछा।
कल्याणी को समझ ही नहीं आ रहा था कि वो कहा से शुरू करे। उसने जोर जोर से रोना शुरू कर दिया।
उसके लिए अपनी आप बीती सुनाना इतना भी आसान नहीं था और वह ये भी नहीं जानती थी कि अगले पल क्या होने वाला है।
कोई उस पर यक़ीन भी करेगा या नहीं , कही उसे इसके बाद यह घर छोड़कर भी न जाना पड़े।
पर आखिर सेठानी के बार बार पूछने पर कल्याणी ने रो रो कर सारा वृतांत कह सुनाया |
उसको पता ही नहीं चला की माया कब वहाँ अपनी माँ से मिलने आई थी और वह भी सब कुछ दरवाजे पर खड़ी सुन रही थी।
कल्याणी तो बस बोले जा रही थी और माया व उसकी माँ आँखें फाड़े सबकुछ सुनती जा रही थी।
एक पल को तो जैसे माया को विश्वास ही नहीं हुआ।
अपने पिता के बारे में ऐसा सुनना, उसके लिए एक नया जख्म देने जैसा था।
वह कल्याणी पर जोर से चिल्लाई और रोने लगी।
माया कि माँ कि ह्रदय व्यथा –
माया की माँ ने माया को शांत किया और बोली “कल्याणी सच बोल रही है, ऐसा ही हुआ होगा |
उस दिन भी मुझे आशंका हुई थी।
मैं अपने पति यानि के तुम्हारे पिता को अच्छे से जानती थी कि वो किस तरह के व्यक्ति थे |
कल्याणी के साथ जो हुआ वो पहली बार नहीं था।
न जाने और कितनी लड़कियों और औरतो की जिंदगी वो तबहा कर चुके है।
उनकी इन्ही हरकतों के कारण मैंने न जाने क्या क्या दिन देखे है।
आज मेरी ये जो हालत है वो ऐसे ही नहीं हुई है।
तुम बहुत छोटी थी मेरी बच्ची, तुमको भी मैं क्या और कैसे बताती। “
आज माया की माँ भी जैसे अपने मन का दुःख छुपा ही नहीं पा रही थी और वो भी बस अपने दिल कि बात उन दोनों से कहे जा रही थी।
“तुम्हारे पिता को अपने पैसो का बहुत गुरुर था। उनको लगता था कि इस पैसे से वो सब कुछ खरीद सकते है।
शायद एक औरत कि इज्जत भी।
और जो औरत नहीं बिकती थी उसके साथ वो— और ये कहकर सेठानी जोर जोर से रोने लगी।
शायद उन सबकी हाय ! और तुम्हारे पिता कि हरकते ही तुम्हारे पिता कि मौत का कारण बन गयी। “
“आपने उनको कभी रोका क्यों नहीं माँ “, माया ने रोते हुए पूछा।
“मेरी उनकी जिंदगी में जगह ही क्या थी ? जो वो रुक जाते मेरी बच्ची”,
“तुम्हारे होने के बाद तो मुझे याद भी नहीं कि हम कभी साथ बैठे हो।
बस उनकी हरकते और उनको न रोक पाने का यही दुःख मुझे भी अंदर ही अंदर खाये जा रहा था और मैं बीमार पर बीमार होती चली गयी।
तुम्हारे अय्याश पिता को एक बीमार औरत से भला क्या लेना देना। “, माया कि माँ अपनी अंतर व्यथा सुनती चली गयी।
दोनों सहेलियों का पुनः मिलन –
काश! कल्याणी की माँ ने उसी दिन सब सच कह दिया होता तो आज तुम्हारी दोस्त तुम्हारे साथ होती
माया ने भाग कर कल्याणी को अपने गले से लगा लिया और जोर जोर से रोने लगी.
कल्याणी का मन अब शांत हो गया था और उसके अंदर चल रहा अन्तर्द्वन्द्व भी।
जो अपराध उसकी माँ ने नहीं किया था उसका कलंक उनके सर से आज हट गया था |
माया का मन भी एक अनजाने अपराध बोध से भर गया था, उसे रह रह कर कल्याणी के साथ किया अपना गन्दा बर्ताव याद आ रहा था |
“मुझे माफ़ कर दो कल्याणी , मुझे तो लगा कि तुम… और वह फिर से रोने लगी। ”
“इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं |” कल्याणी ने माया के आँसू पूछते हुए कहा |
“तुमको कैसे पता होता के उस दिन मेरे साथ क्या हुआ था | तुम बेक़सूर हो मेरी प्यारी सहेली |”
कल्याणी ने कहा और दोनों सहेलिया एक दूसरे के गले लगकर रोने लगी |
अब पुराने दिन लौट आये थे और कल्याणी के जीवन में फिर से बहार आ गयी थी |
आप सभी को मेरी ये कहानी कैसी लगी? क्या कल्याणी ने सही किया? आप इस बारे में क्या सोचते है? आप हमे जरूर बतलाये।
कृपया अपनी प्रतिक्रिया कमैंट्स के माध्यम से जरूर दीजिये।आप अपने व्यूज नीचे दिए कमेंट बॉक्स में लिख कर मुझ तक पंहुचा सकते है।
-रूचि जैन
अन्तर्द्वन्द्व के बाद, Now Read more Hindi stories, “सपनों के देश में” and “हवा बादल और चार बहादुर दोस्त“
Like my facebook page
Very nice !!